मैं नहीं चढ़ाती अब किसी भी दरगाह पर चादर
फिर चाहे उसमे किसी फ़क़ीर का अस्तित्व हो
या आरक्षण का या अफज़ल की फांसी के विरोध का
या फिर हो उसमे रोहित वेमुला
या उस जैसे और सब
जिनके नाम पर होती हैं अब मेरे देश में क्रांतियाँ
भुखमरी बेजारी महंगाई
किसान द्वारा आत्महत्या
रोज एक जैसी ख़बरों ने
इतना संवेदनाओं के चूल्हे को लीपा
कि अब
जड़ हो गया है एक पूरा साम्राज्य
ये जानते हुए भी
कि आजकल नहीं बदला करती तस्वीर किसी भी क्रांति से
बेवजह भटकाए जाते हैं मुद्दे
मैंने दे दी है अंतिम आहुति
राष्ट्र के हवन में
अपनी हहराती भावनाओं की
बस यही है कारण
मर चुकी हैं संवेदनाएं मुझमे .........
4 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना पांच लिंकों का आनन्द में सोमवार 22 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद
सटीक रचना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-02-2016) को "जिन खोजा तीन पाइया" (चर्चा अंक-2260) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आजकल के हालात पर सटीक लिखा है दी ..पर कहाँ हो पातें हैं हम संवेदनहीन ...दर्द तो होता है न ..ये सब देखकर
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