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बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

रश्मि रविजा की नज़र में - अँधेरे का मध्य बिंदु




आजकल पति पत्नी के बीच अहम् का टकराव , एक दूसरे पर सर्वाधिकार की भावना ,परम्परागत रोल में बदलाव की वजह से काफी शादियाँ टूट रही हैं या सिर्फ ऊपर से साबुत दिखती हैं, अंदर गहरी खाईयां हैं .यही सब देख, युवा पीढी बहुत उलझन में है और शादी के नाम से ही घबराकर लिव -इन का ऑप्शन चुनने लगी है . अब सिर्फ उच्च वर्ग में ही नहीं ,मध्यम वर्ग में भी यह चलन बढ़ता जा रहा है .
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Vandana Gupta ने अपने उपन्यास 'अँधेरे का मध्य बिंदु ' में इसी विषय को बहुत समग्रता से व्याख्यायित किया है. इसके हर पहलू पर प्रकाश डाला है. कोई भी रिश्ता ,प्रेम ,आपसी विश्वास ,समझदारी और एक दूसरे को दिए स्पेस पर आधारित हो, तभी सफल हो सकता है . इस उपन्यास के नायक-नायिका के दिल में जब प्रेम प्रस्फुटित होता है तो वे इस सम्बन्ध को आगे ले जाना चाहते हैं पर विवाह के बंधन में नहीं जकड़ना चाहते .बल्कि सिर्फ प्रेम और विश्वास को आधार बना 'लिव इन ' में रहते हैं. एक दूसरे के ऊपर कोई बंधन नहीं है, अपने किसी कार्य के लिए कोई सफाई नहीं देनी , घर खर्च और घर के कार्य में बराबर की हिस्सेदारी है .फलस्वरूप उनका सम्बन्ध सुचारू रूप से बिना किसी अडचन के आगे बढ़ता चला जाता है. नायक और नायिका दो अलग धर्म के हैं .उनके विवाह में कई बाधाएं आतीं .परन्तु लिव -इन जात पात से भी परे है.

समाज और नायक के परिवार वाले ऐसे सम्बन्ध पर आपत्ति जताते हैं . पर अगर लोग अच्छे इंसान हों, सच्चे नागरिक हों, अपना कर्तव्य निभाते हों, अच्छे पडोसी का धर्म निभाते हों तो समाज भी उन्हें सहज ही स्वीकार कर लेता है . जब उनपर आरोप लगाया जाता है कि पडोस की एक लड़की ने उनका अनुसरण करते हुए लिव- इन में रहने का फैसला किया है तो लड़की से बात करने पर स्पष्ट हो जाता है कि वो इनका अनुसरण नहीं कर रही बल्कि अपने माता-पिता के रोज के झगड़े देखकर शादी के नाम से ही डर गई है. लेखिका पाठकों को ये सन्देश भी देती है कि किसी युवा युगल के 'लिव इन ' में रहने के निर्णय पर आक्रोश प्रकट करने से पहले ये देख लें कि वे खुद शादी का कैसा उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं . अगर शादी में रोज का कलह, स्वामित्व और गुलामी की परम्परागत सोच हो तो नई पीढ़ी इस से विमुख हो नए विकल्प तलाशेगी ही .
अक्सर लिव इन को पश्चिम की देन मान लिया जाता है .परन्तु लेखिका ने आदिवासियों में प्रचलित 'घोटुल ' प्रथा के विषय में विस्तार से लिख ये जानकारी दी है कि हमारे देश में ही समाज के कुछ हिस्सों में यह प्रथा प्राचीन समय से प्रचलित है.
उपन्यास में एड्स से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी मिलती हैं . एड्स सिर्फ अवैध रिश्तों का परिणाम नहीं होता. कई कारणों से हो सकता है और सही इलाज ,देखभाल से एड्स के साथ भी बिलकुल सामान्य जीवन गुजारा जा सकता है . इसे इतना भयावह या एड्स ग्रसित रोगी को अछूत ना समझा जाए .
उपन्यास में यथार्थ के धरातल पर गंभीर विषयों के प्रादुर्भाव से पहले ,नायक-नायिका के बीच वर्षा की शीतल फुहार में भीगता ,नाजुक कली सा रोमांस भी है . इन दोनों का प्यार कैसे परवान चढ़ता है, क्या अड़चनें आती हैं, कैसे ये कहानी आगे बढ़ती है ,ये तो उपन्यास पढ़कर ही जाना जा सकता है. उपन्यास की भाषा सहज ही ग्राह्य है .लेखन का प्रवाह कहीं भी रुकने नहीं देता .
एक बिलकुल नए और कुछ हद तक विवादित विषय को उपन्यास का केंद्र बना उसपर विस्तार से लिखने के लिए वंदना बधाई की पात्र हैं. उनके इस उपन्यास के खूब सफल होने की अनेक शुभकामनाएं .आप सब यह उपन्यास जरूर पढ़ें .
निम्न लिंक पर यह किताब मंगवाई जा सकती है .
http://www.amazon.in/gp/product/9385296256


रश्मि रविजा द्वारा ऊपर लिखित समीक्षा जो इस लिंक पर उपलब्ध है :
https://www.facebook.com/rashmi.ravija/posts/10153997835102216?fref=nf

5 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-02-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2242 में दिया जाएगा
धन्यवाद

kuldeep thakur ने कहा…


आपने लिखा...
और हमने पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 05/02/2016 को...
पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
आप भी आयीेगा...

Unknown ने कहा…

भावपूर्ण प्रस्तुति

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत रोचक समीक्षा...हार्दिक शुभकामनाएं!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उपन्यास प्रकाशन की बधाई ...
विस्तृत चर्चा है ...