अंधेरों के पीछे के अँधेरे भी
उतने ही घनेरे होते हैं
ये जानकर होने लगता है अहसास
भविष्य की कछुआ चाल का
जिसमे न गति होगी न रिदम न संगीत
न सुर न लय न ताल
तब भविष्यदृष्टा नहीं तो भी
छटी इंद्री जरूर करती है सचेत
आने वाली काली गहराती परछाइयों से
और जब आशंकाएं अक्सर सच हो जाया करती हैं
ये जानकर होने लगता है अहसास
भविष्य की कछुआ चाल का
जिसमे न गति होगी न रिदम न संगीत
न सुर न लय न ताल
तब भविष्यदृष्टा नहीं तो भी
छटी इंद्री जरूर करती है सचेत
आने वाली काली गहराती परछाइयों से
और जब आशंकाएं अक्सर सच हो जाया करती हैं
ऐसे में संभव ही नहीं
कोई दूसरा जुगाड़ बाहर आने का
तब छोड़कर हर जद्दोजहद
मान लेना चाहिए
ये गहराते अंधेरों से इश्क करने का ही मौसम है
तो क़ुबूल है क़ुबूल है क़ुबूल है
कह
करना ही पड़ता है निकाह
किस किस से , कैसे और कब तक बचूँ
क्या बचना संभव है मेरा ?
जबकि
मेरे चारों तरफ लहलहा रही अंधेरों की सरसों बेइंतेहा
किस किस से , कैसे और कब तक बचूँ
क्या बचना संभव है मेरा ?
जबकि
मेरे चारों तरफ लहलहा रही अंधेरों की सरसों बेइंतेहा
4 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 06 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
अंधेरों की सरसों
जीवन—चुनाव नहीं हो सकता है
जीवन—स्वीकार-भाव है.अतः अंधेरों से गुरेज क्यों,
अंधेरों के साथ-साथ उजाले भी होते हैं.
बहुत खूब ,
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