शब्दविहीन होना
मानो आत्मा विहीन देह
मौन के पिंजर में कैद हो
और अंतस में
कुलबुलाहट का कृष्ण बांसुरी बजाता
जाने किस राधा को रिझाता हो
ये ढकोसलों की सांझें कितनी निर्मोही हैं
कि
साझे दुःख सुख पर भी पहरे बिठा दिए
अब कोई कितना भी
कबीर की साखी सूर के पद मीरा का गायन नृत्यन करे
बंद दरवाज़े किसी थाप के मोहताज नहीं
मौन
शक्ति है तो विध्वंस भी न
कि
साझे दुःख सुख पर भी पहरे बिठा दिए
अब कोई कितना भी
कबीर की साखी सूर के पद मीरा का गायन नृत्यन करे
बंद दरवाज़े किसी थाप के मोहताज नहीं
मौन
शक्ति है तो विध्वंस भी न
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शूुक्रवार (16-10-2015) को "अंधे और बटेरें" (चर्चा अंक - 2131) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया ...
नवरात्रि की शुभकामनायें!
मौन की शक्ति असीमित है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
उम्दा रचना
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