पृष्ठ

अनुमति जरूरी है

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लोग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

' मुँह काला होना '

कितनी उठापटक है
फिर वो साहित्य हो , समाज , राजनीति या रिश्ते

कितने विषय बिखरे पड़े हैं
एक अराजकता सिर उठाये खड़ी है 
मगर मेरी साँसों में 
मेरे दिल में 
मेरे दिमाग में 
मेरी सोच में 
मेरे विचार में 
निष्क्रियता के परमाणु बिखरे पड़े हैं
आहत हैं इतने कि 
प्रतिकार भी नहीं करते और स्वीकार भी नहीं

विस्फोटक समय है ये 
जहाँ आंतरिक उथल पुथल शब्दहीन है
फिर मर्यादाओं के शिखरों का ढहना कोई आश्चर्य नहीं

' मुँह काला होना ' श्रृंगार है आज के समय का ..........

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

"मर्यादाओं के शिखरों का ढहना कोई आश्चर्य नहीं"
दुरुस्त

Unknown ने कहा…

सीधी बात भी... सटीक भी बधाई

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (04.09.2015) को "अनेकता में एकता"(चर्चा अंक-2088) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (04.09.2015) को "अनेकता में एकता"(चर्चा अंक-2088) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।