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शनिवार, 6 दिसंबर 2014

तुम्हें कहानी का पात्र बनाऊँ

तुम्हें कहानी का पात्र बनाऊँ 
या रखूँ तुमसे सहानुभूति 

जाने क्या सोच लिया तुमने 
जाने क्या समझ लिया मैंने 
अब सोच और समझ दोनों में 
जारी है झगड़ा 
रस्सी को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में 
दोनों तरफ बह रही है एक नदी 
जहाँ संभावनाओं की दलदल में 
फंसने को आतुर तुम 
पुरजोर कोशिशों के पुल बनाने में जुटे हो 
और इधर 
सूखी नदी में रेत के बिस्तर पर 
निशानों के चक्रवात में 
सूखा ठूँठ 
न हँस पाता है और न रो 

जानते हो क्यों ?

ईमानदार कोशिशें लहूलुहान ही हुआ करती हैं 
बंजर भूमि में न फसल उगा करती है 
सर्वमान्य सत्य है ये 
जिसे तुम नकारना चाहते हो 

मेरे खुले केशों पर लिखने को एक नयी कविता 
पहले तुम्हें होना होगा ख़ारिज खुद से ही 
और अतीत की बेड़ियों में जकड़ी स्मृतियों के साथ नहीं की जा सकती कोई भी वैतरणी पार 

सुनो 
ये मोहब्बत नहीं है 
और न ही मोहब्बत का कोई इम्तिहान 
बस तुम्हारी स्थिति का अवलोकन करते करते 
रामायण के आखिरी सम्पुट सी एक अदद कोशिश है 
तुम में चिनी चीन की दीवार को ढहाने की 
ताकि उस पार का दृश्य देख सको तुम बिना आईनों के भी 

समंदर होने को जरूरी तो नहीं न समंदर में उतरना 
क्यों न इस बार एक समंदर अपना बनाओ तुम 
जिसमे जरूरत न हो किसी भी खारे पानी की 
न ही हो लहरों की हलचल 
और न ही हो तुम्हारी आँख से टपका फेनिल आंसू 

हो जाओगे हर जद्दोजहद से मुक्त 
बस जरूरत है तो सिर्फ इतनी 
अपनी कोशिशों के पुल से मेरा नाम हटाने की 
क्योंकि 
मेरी समझ की तीसरी आँख जानती है 
तुम्हारी सोच की आखिरी हद ……… 

तोडना तो नहीं चाहती तुझे 
मगर जरूरी है सम्मोहन से बाहर निकालना 

कैसे कहूँ 
नाकाम कोशिशों का आखिरी मज़ार मत बना मुझे 
बुतपरस्ती को ढूँढ ले बस अब एक नया खुदा.........

सुकून की दहलीज को सज़दा करने को ले झुका दी मैंने गर्दन 
बस तू भी एक बार माथा रखकर तो देख 

वैसे भी 
सूखी नदी 
बंजर भूमि 
सूखे ठूँठ 
सम्भावना के अंत को दर्शाती लोकोक्तियों से 
कर रहे हैं आगाह 
ज़ख्मों की मातमपुर्सी पर नहीं बजा करती शहनाइयाँ .……

फिर क्यों फरहाद से होड़ करने को आतुर है तेरे मन की प्रीत मछरिया ???

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अद्भुत रचना.....बहुत सुन्दर...!!!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

Onkar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-12-2014) को "6 दिसंबर का महत्व..भूल जाना अच्छा है" (चर्चा-1820) पर भी होगी।
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सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'