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शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

याद है मुझे तुमने क्या कहा होगा



शाम के धुंधलके मे
सागर मे आगोश मे
सिमटता सूरज जब
रात की स्याही ओढता था
तब तुम और मै
उसके किनारे खडे
एक ज़िन्दगी
जी रहे होते थे
बिना कुछ कहे
सिर्फ़ हाथों मे हाथ होते थे
दिल मे जज़्बात होते थे 

जो हाथों से दिल तक पहुँचते थे

कभी - कभी
हाथ भी
उनका स्पर्श भी
जुबाँ बन जाता है
है न…………


वो वक्त कुछ
अजीब था
और आज देखो
किस मोड पर हैं हमारे वजूद
तुम भी शायद
किसी साँझ को
सागर के किनारे खडे 

डूबते सूरज को देख रहे होंगे
और इन्ही पलों को
याद कर रहे होंगे
पता है मुझे
वरना आज
ये याद की बारिश
बेमौसम यूँ न होती
याद है मुझे
तुमने क्या कहा होगा
जानाँ ………बहुत याद आ रही हो
है न…………

8 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

वाह !!
मंगलकामनाएं आपको !!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन

सादर

Unknown ने कहा…

Bahut hu khubsurat bhaawpurn rachna ...badhaaayi ... Aapse anurodh hai yadi aap mere blog par aaye to mujhe accha lagega ... Aabhaar aapka !!

Onkar ने कहा…

बहुत खूब

Anil Dayama EklA ने कहा…

भावनात्मक अभिव्यक्ति।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

वाह ,वाह !

Rohitas Ghorela ने कहा…

जब दो जन एक साथ हो तो हर समां प्यार में बन्ध जाता है फिर अगर उसी समाँ में एक जन रह जाता है तो याद आना तो लाजमी है.
कशमकश में डूबी जिन्दगी
छाया है मौसम यादों का ...
कमबख्त
एक पल भी नहीं जो ना तड़फूं"

बहुत ही सुन्दर रचना


आप मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित  हैं. :)

Shekhar Suman ने कहा…

कभी - कभी
हाथ भी
उनका स्पर्श भी
जुबाँ बन जाता है
है न…………


वाकई... कितना सच है... :)