शाम के धुंधलके मे
सागर मे आगोश मे
सिमटता सूरज जब
रात की स्याही ओढता था
तब तुम और मै
उसके किनारे खडे
एक ज़िन्दगी
जी रहे होते थे
बिना कुछ कहे
सिर्फ़ हाथों मे हाथ होते थे
दिल मे जज़्बात होते थे
जो हाथों से दिल तक पहुँचते थे
कभी - कभी
हाथ भी
उनका स्पर्श भी
जुबाँ बन जाता है
है न…………
वो वक्त कुछ
अजीब था
और आज देखो
किस मोड पर हैं हमारे वजूद
तुम भी शायद
किसी साँझ को
सागर के किनारे खडे
डूबते सूरज को देख रहे होंगे
और इन्ही पलों को
याद कर रहे होंगे
पता है मुझे
वरना आज
ये याद की बारिश
बेमौसम यूँ न होती
याद है मुझे
तुमने क्या कहा होगा
जानाँ ………बहुत याद आ रही हो
है न…………
10 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना शनिवार 11 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
वाह !!
मंगलकामनाएं आपको !!
बेहतरीन
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 12/10/2014 को "अनुवादित मन” चर्चा मंच:1764 पर.
Bahut hu khubsurat bhaawpurn rachna ...badhaaayi ... Aapse anurodh hai yadi aap mere blog par aaye to mujhe accha lagega ... Aabhaar aapka !!
बहुत खूब
भावनात्मक अभिव्यक्ति।
वाह ,वाह !
जब दो जन एक साथ हो तो हर समां प्यार में बन्ध जाता है फिर अगर उसी समाँ में एक जन रह जाता है तो याद आना तो लाजमी है.
कशमकश में डूबी जिन्दगी
छाया है मौसम यादों का ...
कमबख्त
एक पल भी नहीं जो ना तड़फूं"
बहुत ही सुन्दर रचना
आप मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित हैं. :)
कभी - कभी
हाथ भी
उनका स्पर्श भी
जुबाँ बन जाता है
है न…………
वाकई... कितना सच है... :)
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