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मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

ओ मेरे रांझणा !!!


Vandana Gupta's photo.

ठंडी पड चुकी चिताओं में सिर्फ़ राख ही बचा करती है 
जानते हो न 
फिर भी कोशिशों के महल 
खडे करने की जिद कर रहे हो 
ए ! मत करो खुद को बेदखल ज़िन्दगी से 
सच कहती हूँ 
जो होती बची एक भी चिंगारी सुलगा लेती उम्र सारी

काश अश्कों के ढलकने की भी एक उम्र हुआ करती 
और बारिशों में भीगने की रुत रोज हुआ करती 
जानते हो न 
ख्वाबों के दरख्तों पर नहीं चहचहाते आस के पंछी 
फिर क्यों वक्त की साज़िशों से जिरह कर रहे हो 
ए ! मत करो खुद की मज़ार पर खुद ही सज़दा 
सच कहती हूँ 
जो बची होती मुझमें मैं कहीं
तेरी तडप के आगोश में 
भर देती कायनात की मोहब्बत सारी

मर कर ज़िन्दा करने की तेरी चाहत का नमक 
काफ़ी है अगले जन्म तक के लिए ………ओ मेरे रांझणा !!!

10 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना बुधवार 15 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत बढ़िया दी

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति !

Asha Lata Saxena ने कहा…

मर कर ज़िंदा रहने के लिए तेरी चाहत का नमक ही काफी है |
सुन्दर भावपूर्ण रचना

Anil Dayama EklA ने कहा…

बेहतरीन रचना

कविता रावत ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति ...

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

कोमल भावयुक्त सुन्दर रचना.....

Ranjana verma ने कहा…

सुन्दरप्रस्तुति......

Arun sathi ने कहा…

साधू साधू

Unknown ने कहा…

बेहतरीन