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गुरुवार, 4 सितंबर 2014

तुम्हारे मेरे बीच

तुम्हारे मेरे बीच 
कभी कुछ था ही नहीं 
जो कह सकती मैं आज 
' हमारे बीच कुछ बचा ही नहीं '

देखा कितनी कंगाल रही 
हमारी , न न न मेरी मोहब्बत 
जो देवता की आस में 
सज़दे में सारी उम्र गुजार दी 

संवाद के स्थगित पल साक्षी हैं तुम्हारे और मेरे बीच कुछ न होने के 

12 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

sundar kavita... hamesha ki tarah

संजय भास्‍कर ने कहा…

रचना सीधे दिल से निकली अनुभूतियाँ

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर रचना।
मन के भावों को अच्छे शब्द दिये हैं आपने।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सुन्दर रचना !
गुस्सा
गणपति वन्दना (चोका )

Unknown ने कहा…

वाह

dr.mahendrag ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बढिया कविता है.

मन के - मनके ने कहा…

संवाद के स्थगित पल---
भावपूर्ण

मन के - मनके ने कहा…

संवाद के स्थगित पल--
भावपूर्ण-अभिव्य्क्ति

मन के - मनके ने कहा…


संवाद के स्थगित पल---भावपूर्ण

वाणी गीत ने कहा…

संवाद न होने पर भी कुछ तो है जो इतना जोर देकर कहना पड़ा - कुछ नहीं है !
अर्थपूर्ण!

वाणी गीत ने कहा…

संवाद न होने पर भी कुछ तो है जो इतना जोर देकर कहना पड़ा - कुछ नहीं है !
अर्थपूर्ण!