वक्त
के हाशिये पर
खडे
दो आदमकद कंकाल
अपने
अपने वजूद की
परछाइयाँ
ढूँढते मिट गये
मगर
एक टुकडा भी
हाथ
ना आया
जाने
वक्त निगल गया
या
मोहब्बत
रुसवा हुई
मगर
फिर भी
ना
दीदार की
हसरत
हुई
अब
तू ही कर
ए
ज़माने ये फ़ैसला
ये वक्त की जीत हुई
या
मोहब्बत की हार हुई
9 टिप्पणियां:
अच्छी रचना .!
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , मेरे ब्लॉग पर आकर अपने सुझाव दे और ब्लॉग से जुड़कर मार्गदर्शन करें
अच्छी रचना .!
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , मेरे ब्लॉग पर आकर अपने सुझाव दे और ब्लॉग से जुड़कर मार्गदर्शन करें
अच्छी रचना .!
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , मेरे ब्लॉग पर आकर अपने सुझाव दे और ब्लॉग से जुड़कर मार्गदर्शन करें
अति सुन्दर
सुन्दर पोस्ट।
बिलकुल सही बात है
खुबसूरत अभिवयक्ति..
सुंदर
BEHTREEN !
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