दर्द उदास है
कि जुटा है आज
इक कराह की तलाश में
ये हिय की पीरों पर
सावन के हिंडोले
कब पडे हैं भला
जो पींग भर पाती इक आह
मोहब्बत के चश्मेशाही में तो
बस दिलजलों के मेले लगा करते हैं जानाँ
हर खामोश चोट ही उनका समन्दर हुआ करती है
और खारापन ………उनका जीवन
तभी तो
उदासी की नेमत हर किसी को अता भी तो नहीं फ़रमाता खुदा
इसलिये
इश्क के चश्मों में नमी ज़रा कम ही हुआ करती है
और मोहब्बत बेइंतेहा
तभी तो
हर चोट हर वार
मोहब्बत की पुख्तगी का सबूत हुआ करता है
और प्रेमियों के लिए सुधामृत
ओह ! तभी दर्ज होता है
प्रेम की पाठशाला में
इश्क के कायदे का पहला और अन्तिम वाक्य
" घट का छलछलाते रहना जरूरी है "
4 टिप्पणियां:
विचारणीय |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-06-2014) को "बरस जाओ अब बादल राजा" (चर्चा मंच-1644) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बेहद खुबसूरत।
प्रेम का घड़ा छलकना ही चाहिये...
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