तुम कहती हो
" जीना है मुझे "
मैं कहती हूँ ………… क्यों ?
आखिर क्यों आना चाहती हो दुनिया में ?
क्या मिलेगा तुम्हे जीकर ?
बचपन से ही बेटी होने के दंश को सहोगी
बड़े होकर किसी की निगाहों में चढोगी
तो कहीं तेज़ाब की आग में खद्कोगी
तो कहीं बलात्कार की त्रासदी सहोगी
फिर चाहे वो बलात्कार
घर में हो या बाहर
पति द्वारा हो या रिश्तेदार द्वारा या अनजान द्वारा
क्या फर्क पड़ता है या पड़ेगा
क्योंकि
शिकार तो तुम हमेशा ही रहोगी
जरूरी नहीं की निर्वस्त्र करके ही बलात्कार किया जाए
कभी कभी जब निगाहें भेदती हैं कोमल अंगों को
बलात्कृत हो जाती है नारी अस्मिता
जब कपड़ों के अन्दर का दृश्य भी
हो जाता है दृश्यमान देखने वाले की कुत्सित निगाह में
हो जाती है एक लड़की शर्मसार
इतना ही नहीं कोई फर्क नहीं पड़ता
तुम बच्ची हो , युवा या प्रौढ़
तुम बस एक देह हो सिर्फ देह
जिसके नहीं होते हाथ, पैर या मन
होती है तो सिर्फ शल्य चिकित्सा की गयी देह के कामुक अंग
उनसे इतर तुम कुछ नहीं हो
क्या है ऐसा जो तुम्हें कुलबुला रहा है
बाहर आने को प्रेरित कर रहा है
क्या मिलेगा तुम्हें यहाँ आकर
देखो तो ………….
कितनी निरीह पशु सी
शिकार हो चुकी हैं न्याय की आस में
मगर यहाँ न्याय
एक बेबस विधवा के जीवन की अँधेरी गली सा शापित खड़ा है
कहीं नाबलिगता की आड़ में तो कहीं संशोधनों के जाल में
मगर स्वयं निर्णय लेने में कितना सक्षम है
ये आंकड़े बताते हैं
कि न्याय की आस में वक्त करवट बदलता है
मगर न्याय का त्रिशूल तो सिर्फ पीड़ित को ही लगता है
हो जाती है वो फिर बार- बार बलात्कृत
कभी क़ानून के रक्षक द्वारा कटघरे में खड़े होकर
तो कभी किसी रिपोर्टर द्वारा अपनी टी आर पी के लिए कुरेदे जाने पर
तो कभी गली कूचे में निकलने पर
कभी निगाह में हेयता तो कभी सहानुभूति देखकर
तो कभी खुदी पर दोषारोपण होता देखकर
अब बताओ तो ज़रा ………… क्या आना चाहोगी इस हाल में
क्या जी सकोगी विषाक्त वातावरण में
ले सकोगी आज़ादी की साँस
गर कर सको ऐसा तो आना इस जहान में ……………तुम्हारा स्वागत है
क्रमश : …………
5 टिप्पणियां:
सामायिक रचना प्रस्तुति बधाई
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, बहुत बहुत बधाई
ओह !
बहुत ही मार्मिक ढंग से आपने विषय-वस्तु, देश-काल का वर्णन करते हुए सारी चीजों को पूरी तरह फैला कर फिर समेटते हुए कविता का निर्माण किया है .... एक अच्छी सोच की कविता के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई Vandana Gupta जी ......
- शून्य आकांक्षी
आह ! बस आह ही निकलती है..
बहुत ही मार्मिक रचना और आज के समाज के घिनोने चेहरे का चित्रण
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