महज ढकोसलों और दिखावों की भेंट चढ़ी है
दो शब्द कह देना भर नहीं होता नारी विमर्श
आन्दोलन करना भर नहीं होता नारी मुक्ति
नारी की मुक्ति के लिए नारी को करना होता है
जड़वादी , रूढ़िवादी सोच से खुद को मुक्त
मगर अभी जमीन उर्वर नहीं है
अभी नहीं डाली गयी है इसमें
उचित मात्रा में खाद ,बीज और पानी
उचित मात्रा में खाद ,बीज और पानी
फिर कैसे बहे बदलाव की बयार
कैसे पाए नारी अपना सम्मान
अभी संभव नहीं हवाओं के रुख का बदलना
जानती हो क्यों ………… क्योंकि
यहाँ है जंगलराज ……… न कोई डर है ना कानून
चोर के हाथ में ही है तिजोरी की चाबी
ऐसे में किस किस से और कब तक खुद को बचाओगी
कैसे इस माहौल में जी पाओगी
ये सब सोच लेना तब आना इस दुनिया में ………… तुम्हारा स्वागत है
और सुनो सबसे बडा सच
नहीं हुयी मैं इतनी सक्षम
जो बचा सकूँ तुम्हें
हर विकृत सोच और निगाह से
नहीं आयी मुझमें अभी वो योग्यता
नहीं है इतना साहस जो बदल सकूँ
इतिहास के पन्नों पर लिखी इबारतें
पितृसत्तात्मक समाज के चेहरे से
सिर्फ़ कहानियों , कविताओं ,आलेखों या मंच पर
बोलना भर सीखा है मैनें
मगर नहीं बदली है इक सभ्यता अभी मुझमें ही
फिर कैसे तुम्हें आने को करूँ प्रोत्साहित
कैसे करूँ तुम्हारा खुले दिल से स्वागत
जब अब तक
खुद को ही नहीं दे सकी तसल्लियों के शिखर
खुद को ही नहीं दे सकी तसल्लियों के शिखर
जब अब तक
खुद को नहीं कर सकी अपनी निगाह में स्थापित
खुद को नहीं कर सकी अपनी निगाह में स्थापित
बन के रही हूँ अब तक सिर्फ़ और सिर्फ़
पुरुषवादी सोच और उसके हाथ का महज एक खिलौना भर
फिर भी यदि तुम समझती हो
तुम बदल सकती हो इतिहास के घिनौने अक्षर
मगर मुझसे कोई उम्मीद की किरण ना रखना
गर कर सको ऐसा तब आना इस दुनिया में ……तुम्हारा स्वागत है
ये वो तस्वीर है
वो कडवा सच है
आज की दुनिया का
जिसमें आने को तुम आतुर हो
और कहती हो
" जीना है मुझे "
8 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना शनिवार 14 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
inpirational realy
inpirational realy
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-06-2014) को "इंतज़ार का ज़ायका" (चर्चा मंच-1643) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सटीक रचना
ये वो तस्वीर है
वो कडवा सच है
.. भ्रूण हत्या आज के आधुनिक समाज के मुहं पर एक करारा तमाचा है ... एक दुखांत कडुवी सचाई है यह हमारे समाज की
बहुत सुन्दर प्रस्तुति एक यथार्थ और कड़वा सच है कब होंगे हम जागरूक ?
भ्रमर ५
सुन्दर सार्थक सन्देश...
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