दुनिया बहुत सुन्दर है
देखना चाहती हो तुम
जीना चाहती हो तुम
हाँ सुन्दर है मगर तभी तक
जब तक तुम " हाँ " की दहलीज पर बैठी हो
जिस दिन " ना " कहना सीख लिया
पुरुष का अहम् आहत हो जाएगा
और तुम्हारा जीना दुश्वार
तुम कहोगी …………क्यों डरा रही हूँ
क्या सारी दुनिया में सारी स्त्रियों पर
होता है ऐसा अत्याचार
क्या स्त्री को कोई सुख कभी नहीं मिलता
क्या स्त्री का अपना कोई वजूद नहीं होता
क्या हर स्त्री इन्ही गलियारों से गुजरती है
तो सुनो ……………एक कडवा सत्य
हाँ ……………एक हद तक ये सच है
कभी न कभी , किसी न किसी रूप में
होता है उसका बलात्कार
कभी इच्छाओं का तो कभी उसकी चाहतों का
तो कभी उसकी अस्मिता का
होता है उस पर अत्याचार
यूं ही नहीं कुछ स्त्रियों ने आकाश पर परचम लहराया है
बेशक उनका कुछ दबंगपना काम आया है
मगर सोचना ज़रा ……ऐसी कितनी होंगी
जिनके हाथों में कुदालें होंगी
जिन्होंने खोदा होगा धरती का सीना
सिर्फ मुट्ठी भर …………… एक सब्जबाग है ये
नारी मुक्ति या नारी विमर्श
फिर चाहे विज्ञापन की मल्लिका बनो
या ऑफिस में काम करने वाली सहकर्मी
या कोई जानी मानी हस्ती
सबके लिए महज सिर्फ देह भर हो तुम
फिर चाहे उसका मानसिक शोषण हो या शारीरिक
दोहन के लिए गर तैयार हो
प्रोडक्ट के रूप में प्रयोग होने को गर तैयार हो
अपनी सोच को गिरवीं रखने को गर तैयार हो
तो आना इस दुनिया में ………… तुम्हारा स्वागत है
क्रमश : …………
क्रमश : …………
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (07-06-2014) को ""लेखक बेचारा क्या करे?" (चर्चा मंच-1636) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत खूब !
हिंदी साइंस फिक्शन
सुंदर प्रस्तुति।।।
सच में डराओ मत, "ना" कहना सिखाओ !! सोचने पर विवश करती रचना ।
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