कोई भीगा हो तो जानेगा गीलेपन का अहसास
और यहां तो जंगल के जंगल रेगिस्तान हो गये
ना तुम वो रहे ना मैं वो रही
बस सब उम्र के बियाबान हो गये
जाने हुये अजनबी और दर्द की लकीरें
सब के सब खुद से अंजान हो गये
जो बोये थे कभी तुमने बबूल के बोर
सब के सब आज मेरी जान हो गये
कभी जीये थे जो इश्क की दास्तानों में
लम्हे वो सभी मेरे बेजुबान हो गये
क्या करे कोई फ़रमाईश क्या करे कोई शिकायत
जितने रकीब थे सभी मेरे मेहमान हो गये
अब जीने की आरज़ू ना मरने का रहा गम
जिस भी कूचे से गुजरे वहीं बदनाम हो गये
जिन रहबरोंसे गुजरा करते थे रात दिन
ले तेरे शहर से आज हम अंजान हो गये
और यहां तो जंगल के जंगल रेगिस्तान हो गये
ना तुम वो रहे ना मैं वो रही
बस सब उम्र के बियाबान हो गये
जाने हुये अजनबी और दर्द की लकीरें
सब के सब खुद से अंजान हो गये
जो बोये थे कभी तुमने बबूल के बोर
सब के सब आज मेरी जान हो गये
कभी जीये थे जो इश्क की दास्तानों में
लम्हे वो सभी मेरे बेजुबान हो गये
क्या करे कोई फ़रमाईश क्या करे कोई शिकायत
जितने रकीब थे सभी मेरे मेहमान हो गये
अब जीने की आरज़ू ना मरने का रहा गम
जिस भी कूचे से गुजरे वहीं बदनाम हो गये
जिन रहबरोंसे गुजरा करते थे रात दिन
ले तेरे शहर से आज हम अंजान हो गये
8 टिप्पणियां:
bahut khoob
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
आभार
Khoob
Sunder Rachna
अच्छी ग़ज़ल !
behtareen, bahut sundar :-)
सुंदर है जी.
जो बोये थे कभी तुमने बबूल के बोर
सब के सब आज मेरी जान हो गये.…….वाह.एक से बढ़कर एक शेर
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