साँस पर गाँठ
मौत की अंतिम अरदास
अब बूझने को बचा क्या ?
चल बंजारे
डेरा उठाने का वक्त आ गया
क्योंकि
अंतत: बंजारे ही तो हैं हम सब
ज़िन्दगी से बहुत कर चुके यारा
अब
मौत से इश्क करने का जो वक्त आ गया
रूह के लिबास को दुरुस्त करने का वक्त आ गया ……
मौत की अंतिम अरदास
अब बूझने को बचा क्या ?
चल बंजारे
डेरा उठाने का वक्त आ गया
क्योंकि
अंतत: बंजारे ही तो हैं हम सब
ज़िन्दगी से बहुत कर चुके यारा
अब
मौत से इश्क करने का जो वक्त आ गया
रूह के लिबास को दुरुस्त करने का वक्त आ गया ……
12 टिप्पणियां:
रूह बंजारा ही है, एक जगह कब ठहरा है
सार्थक रचना !
बहुत खूबसूरत रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-02-2014) को "तुमसे प्यार है... " (चर्चा मंच-1518) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मोत से इश्क करने का वक्त आ गया है
रूह के लिबास को दुरुस्त करने का वक्त आ गया
है......बहुत खूब ....
बूझना तो शेष रह ही जाता है। हाँ अब बूझने का अर्थ क्या है?
अंतत: बंजारे ही तो हैं हम सब
...wakai
ek behtreen rachna ke liye badhai
बंजारा यह सन्देश ही तो देता है,पर कोई उसकी बात पर अम्ल करना नही चाहता.
Bndhna ji jo dhuruv sty hai vh to hai hi pr yh sb kyon
Bndhna ji jo dhuruv sty hai vh to hai hi pr yh sb kyon
HRIDAY SPARSHEE KAVITA KE LIYE
HARDIK BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .
जब तक जीवन है अंतिम सफर की तैयारी क्यों ...
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