पृष्ठ

अनुमति जरूरी है

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लोग से कोई भी पोस्ट कहीं ना लगाई जाये और ना ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

बसंत बसंत बसंत ....... ओ बसंत !

आहा ! 
बसंत बसंत बसंत ....... ओ बसंत !

रोम रोम में छाये 
तुम्हारे नव पल्लव 
आम्र मंजरी जो बौरायी 
जब आयी उस पर तरुणाई
धरा की प्यास जो बुझाई 
पीली सरसों भी इठलाई 
ये कैसे खुमारी छायी 
खिल उठी मन अंगनाई 

आहा ! 
बसंत बसंत बसंत ....... ओ बसंत !

जीवन में खिल उठे 
अब कुसुमित पल 
पुष्प पुष्प पर कैसे 
गुन गुन करते भ्रमर 
प्यास के पंछियों की 
कैसी प्यास बुझाई 
हर मुख पर मानो 
सरसों ही खिल आयी 

आहा ! 
बसंत बसंत बसंत ....... ओ बसंत !

मालती चंपा चमेली 
संग संग खिलें सहेली 
हरसिंगार ने मानो 
धरा पर बिछौना बनाया 
मानो करे आह्वान प्रेमी युगल का 
अभिसार रुत है आयी 
मानो किसी इठलाई मचलायी तरुणी की 
आँख गयी है  शर्मायी 
मानो सोमरस के पान को 
व्याकुल धरा है अकुलाई 

आहा ! 
बसंत बसंत बसंत ....... ओ बसंत !
तुम्हारा आगमन भला कैसे हो निर्रथक …… 

8 टिप्‍पणियां:

Ranjana verma ने कहा…

बहुत सुंदर.....!! बसंती रंग से रंगा बसंत...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत खूब,लाजबाब प्रस्तुति...!
RECENT POST -: पिता

Aditi Poonam ने कहा…

सुंदर बासंती कविता.....!

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत बढिया..बसंती रचना

रश्मि शर्मा ने कहा…

आहा !
बसंत बसंत बसंत ....... ओ बसंत !
बहुत सुंदर वर्णन

Rachana ने कहा…

vasant pr bhavpurn kavita
rachana

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर वासंती भाव

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर बासंती कविता.....!