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गुरुवार, 30 मई 2013

ओ मेरे !..........2

कुछ आईने बार बार टूटा करते हैं कितना जोड़ने की कोशिश करो .............शायद रह जाता है कोई बाल बीच में दरार बनकर .............और ठेसों का क्या है वो तो फूलों से भी लग जाया करती हैं ............और मेरे पास तो आह का फूल ही है जब भी आईने को देख आह भरी ............टूटने को मचल उठा . आह ! निर्लज्ज , जानता ही नहीं जीने का सुरूर ...........जो कहानियाँ सुखद अंत पर सिमटती हैं कब इतिहास बना करती हैं और मुझे अभी दर्ज करना है एक पन्ना अपने नाम से ...........इतिहास में नहीं तुम्हारी रूह के , तुम्हारी अधखिली , अधपकी चाहत के पैबदों पर ...........जो उघडे तो देह दर्शना का बोध बने और ढका रहे तो तिलिस्म का .............मुक्तियों के द्वार आसान नहीं हुआ करते और जीने के पथ दुर्गम नहीं हुआ करते ............कशमकश में जीने को खुद का मिटना भी जरूरी है फिर चाहे कितना आईना देखना या टूटे आइनों में निहारना .........तसवीरें नहीं बना करतीं , अक्स नहीं उभरा  करते फ़ना रूहों के ........जानां !!!

मैंने तो सुपारी ले ली है अपनी बिना दुनाली चलाये भी मिट जाने की ...........क्या कभी देख सकोगे आईने में खुद के अक्स पर खुद को ऊंगली उठाये ............ये एक सवाल है तुमसे ..........क्या दे सकोगे कभी " मुझसा जवाब " ............ओ मेरे !

10 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

सही कह रही हैं आप, बहुत मुश्किल लग रहा है जवाब देना.

रामराम.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

क्या जवाब हो सकता है ??????????

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत हिम्मत चाहिए ... खुद पे ऊँगली उठाने के लिए ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत उम्दा,पर जबाब देना मुश्किल है ,

Recent post: ओ प्यारी लली,

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

भावपूर्ण प्रस्तुति !
latest post बादल तु जल्दी आना रे (भाग २)
अनुभूति : विविधा -2

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

चुप!!! कोई उत्तर नहीं सूझ रहा | निशब्द |

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

Maheshwari kaneri ने कहा…

सही कहा. जबाब देना मुश्किल है ,

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

क्या जवाब हो सकता है ?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2013) के "जिन्दादिली का प्रमाण दो" (चर्चा मंचःअंक-1261) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Shikha Kaushik ने कहा…

बिल्कुल सही कहा है आपने . आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .

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