सपनों के संसार की अनुपम सुंदरी नहीं जो तुम्हें ठंडी हवा के झोंके सी लगती, फिर भी हूँ .......सोचती हूँ , शायद , कुछ ...........तुम्हारी भी या तुम्हारी बेरुखी की सजायाफ्ता तस्वीर ...........इस उम्मीद के चराग को बुझने नहीं देना चाहती इसलिए खूब डालती हूँ तेल तुम्हारे दिए ज़ख्मों पर आंसुओं का ........आहा ! फिर जो सुरूर चढ़ता है , फिर जो नशा होता है , फिर जो रवानी होती है ............कब सुबह हुयी और कब शाम .........कौन पता करता है ...............एक मखमली सुकून की तलाश ख़त्म हो जाती है जैसे ही तुम्हारे दिए ज़ख्मों को जलते चिमटे से सहलाती हूँ ...........उम्र ठहर जाती है कुछ देर मेरी दहलीज पर ...............और मैं करती हूँ अट्टाहस अपने गुरूर पर , उस सुरूर पर जो सिर्फ मेरा है और मैं ...............हूँ , का अहसास चुरा लेता है तुम्हारी नींद भी फिर चाहे नहीं हूँ मैं तुम्हारी चाहत की दुल्हन , तुम्हारे सपनो का कोहिनूर ..............नशे के लिए जरूरी नहीं होता हर बार जाम को पीना ..............जो सुरूर बिना पीये चढ़ते हैं उम्र फ़ना होने पर भी न उतरते हैं ........जानां !!!
बस इतना जानती हूँ ..............तुम्हारे सपनो के संसार की अनुपम सुंदरी नहीं एक धधकती ज्वाला हूँ मैं, गर्म लू सी जो झुलसा देती है चमड़ी तक भी ...........कहो , जी सकोगे अब साथ मेरे या मेरे ना होने पर भी ...........तुमसे एक सवाल है ये ...........क्या दे सकोगे कभी " मुझसा जवाब " ............ओ मेरे !
14 टिप्पणियां:
गर्माहट, अग्नि शिखा, ज्वाला, धधकती आग् के शोले नहीं ये तो प्यार के उलाहने से लगते हैं. बहुत खूबसूरती से मन के गुबारों के गोले छोड़े हैं.
आक्रोश धधक रहा है ज्वाला सा ...
सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .
लू जैसे?? ओह...
बेशक...
अनु
aakrosh hai........
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (24-05-2013) के गर्मी अपने पूरे यौवन पर है...चर्चा मंच-अंकः१२५४ पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मुझ सा जवाब....है बड़ा सवाल
आक्रोश से भरी,,ज्वाला सी धधकती अभिव्यक्ति ,निश्चय ही ज्वालामुखी फूटने की संकेत है
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bahut badhia....sawal ....par jawaav milna mushkil hoga ....
ये ज्वाला भी ज़रूरी है ।
बहुत ही सुन्दर... पर जवाब निश्चित ही मुस्किल होगा.....
क्या लिखें...?
बस! यही सोच रहे हैं... इस दर्द, इस जलन को किस तरह झेला होगा...... जिसकी तपन एक-एक शब्द धधक रहा है...
~सादर!!!
बहुत सुन्दर ।
सब पढ़ा .. बस अवाक ...
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