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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

ओ प्रदीप्तनयन!

वक्त के उस छोर पर खड़े तुम
और इस छोर पर खडी मैं
फिर भी एक रिश्ता तो जरूर है
कोई ना कोई कड़ी तो जरूर है
हमारे बीच यूँ ही तो नहीं 
संवादों का आदान प्रदान होता 
चाहे बीच में गहन अंधकार है
नहीं है कोई साधन देखने का
जानने का एक दूजे को
मगर फिर भी 
कोई तो सिरा है 
जो स्पंदन के सिरों को जोड़ता है
वरना यूँ ही थोड़े ही 
सूर्योदय के साथ 
मिलन की दुल्हन साज श्रृंगार किये
प्रतीक्षारत होती 
कभी अपनी चूड़ियों की खन खन से 
तो कभी पायल की रून झुन से
अपनी भावनाओं का आदान प्रदान करती
वैसे भी सुना है 
स्पंदन शब्दों के मोहताज नहीं होते
देखो तो ज़रा 
ना तुमने मुझे देखा 
ना जाना ना चाहा
मगर फिर भी एक डोर तो है 
हमारे बीच
यूँ ही थोड़े ही रोज 
कोई किसी का 
वक्त के दूसरे छोर पर खड़ा
इंतज़ार करता है
मैं तो ज़िन्दगी गुज़ार देती यूँ ही 
मगर वक्त की कुचालें कोई कब समझा है 
यूँ ही थोड़े ही वक्त का पहरा रहा है 
ये स्पंदनों के शाहकार भी अजीब  होते हैं
लफ़्ज़ों को बेमानी कर 
अपनी मर्ज़ी करते हैं
देखो तो 
वक्त अब डूबने को अग्रसर है
और तुम ना जाने
कौन से दूसरे ब्रह्माण्ड में चले गए हो
जो समय की सीमा से भी मुक्त हो गए हो
मगर मैं आज भी
इंतज़ार की बैसाखियों पर खडी
तुम्हारे नाम की 
हाँ हाँ नाम की ..........जानती हूँ
ना तुम्हारा कोई नाम है 
ना मेरा 
ना तुमने मुझे जाना है 
ना मैंने
फिर भी एक नाम दिया है तुम्हें मैंने…ओ प्रदीप्तनयन!
बस उसी नाम का दीप जलाए बैठी हूँ
ओह ! आह ! उम्र के सिरे कितने कमज़ोर निकले
स्पंदनों की सांसें भी थमने लगीं
शायद शब्दों का अलगाव रास नहीं आया 
तभी धुंध के उस पार सिमटा तुम्हारा वजूद
किसी स्पंदन का मोहताज ना रहा 
और मैं अपनी साँसों को छील रही हूँ
शायद कोई कतरा तो निकले 
जिसमे कोई स्पंदन तो बचा हो 
और इंतज़ार मुकम्मल हो जाए 
ये वक्त की कसौटी पर इंतज़ार की रूहों का सिसकना देखा है कभी ?
ए .........एक बार हाथ तो बढाओ
एक बार गले तो लगाओ
और दम निकल जाए 
फिर मुकम्मल ज़िन्दगी की चाह कौन करे ?

16 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आँखों की ज्योति आकर्षित करती है।

shikha varshney ने कहा…

ओह ..यह इंतज़ार , यह आस और यह सपंदन ..

सदा ने कहा…

वाह ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

तेरी बाहों में दम निकले इससे बेहतर कुछ,ज़िन्दगी मुझे क्या देगी.......

मोहब्बत की इन्तहा है ये...
वंदना जी...लाजवाब..

अनु

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

prabhavshali kavita

रश्मि प्रभा... ने कहा…

रिश्ता ही तो है
जो एहसासों का पन्ना तुम्हारे नाम किया

ZEAL ने कहा…

awesome..

kshama ने कहा…

Behad sundar!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रिश्तों की कशिश ऐसी ही होती है!

mridula pradhan ने कहा…

lazabab.....

मनोज कुमार ने कहा…

ये स्पंदन दिल से दिल तक होती है।

***Punam*** ने कहा…

भावपूर्ण...!!

अरुन अनन्त ने कहा…

वाह क्या बात है इतनी सुन्दर अभियक्ति

Madan Mohan Saxena ने कहा…

रूठे हुए शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नयन भी बखूबी संवाद कराते हैं .... सुंदर प्रस्तुति

संध्या शर्मा ने कहा…

एक बार गले तो लगाओ और दम निकल जाए
फिर मुकम्मल ज़िन्दगी की चाह कौन करे ?
सचमुच जिंदगी से बढ़कर होगी यह मौत... लाजवाब रचना