जो तफ़सील से सुन सके
जो तफ़सील से कह सकूँ
वो बात , वो फ़लसफ़ा
एक इल्तिज़ा, एक चाहत
एक ख्वाहिश, एक जुनून
चढाना चाहती थी परवान
ढूँढती थी वो चारमीनार
जिस पर लिख सकती वो इबारत
मगर बिना छत की दीवारों के घर नही हुआ करते
जान गयी थी ……तभी तो
खामोशी की कब्रगाह मे सुला दिया हर हसरत को
क्योंकि
दीवानगी की हद तक चाहने वाले ताजमहल के तलबगार नही होते
और मुझे तुम कभी मिले ही नही
तो किसे सुनाती दास्तान-ए-दिल
पास होकर भी दूरियों ने कैसी लक्ष्मण रेखा खींची हैजो तफ़सील से कह सकूँ
वो बात , वो फ़लसफ़ा
एक इल्तिज़ा, एक चाहत
एक ख्वाहिश, एक जुनून
चढाना चाहती थी परवान
ढूँढती थी वो चारमीनार
जिस पर लिख सकती वो इबारत
मगर बिना छत की दीवारों के घर नही हुआ करते
जान गयी थी ……तभी तो
खामोशी की कब्रगाह मे सुला दिया हर हसरत को
क्योंकि
दीवानगी की हद तक चाहने वाले ताजमहल के तलबगार नही होते
और मुझे तुम कभी मिले ही नही
तो किसे सुनाती दास्तान-ए-दिल
सोचती हूँ ..........
एक मकबरा बनवा दूं
और उस पर लिखवा दूं
अधूरी हसरतों का ताजमहल ............है ना सनम !!!!!!!!!!
20 टिप्पणियां:
अधूरी हसरतों का ताजमहल .... अलग सी सोच
bahut sundar
बेहतरीन अभिव्यक्ति..
bahut hi gambheer kawit...prempurn
ये हुई ना बात . मकबरा बनवा ही दीजिये
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
bada achcha likhin......adhoori hasraton ka tajmahal.....
ताजमहल की नई पहचान....
"अधूरी हसरतों का ताजमहल"
बढ़िया लिखा है आपने | बहुत खूब |
इस समूहिक ब्लॉग में आए और हमसे जुड़ें :- काव्य का संसार
यहाँ भी आयें:- ओ कलम !!
adhoori hasaraten--- dil ko chhooti huyee rachana| ---
वाह .... बहुत बढ़िया ...
हृदयस्पर्शी....!
अनुपम प्रयोग. हसरतों के सिलसिले इसी तरह से चलते रहना चाहिये.
ह्म्म्म.....
शायद कुछ सुकून यूँही मिल जाए....
सस्नेह
अनु
Gazab kee aoothee rachana!
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना.बहुत बधाई आपको
वाह,.... .....बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट ।
खुदा ने पूछा कि हसरतों कि आजमाइश के किये तैयार रहो ,आपकी रचना पड़कर याद आ गई ये पंक्तियाँ |आभार सुन्दर पोस्ट हेतु |
एक टिप्पणी भेजें