किसने हक़ दिया
तुम्हें हंसने का
अपनी मनपसंद
ज़िन्दगी जीने का
किसने हक़ दिया
तुम्हें मरने का
ज़िन्दगी से ऊब कर
ज़िन्दा लाशें
सिर्फ सड़ने के लिए
होती हैं
उनका वजूद
होता ही कब है
जो कुछ पल
मुस्कुरा सकें
उनका वजूद होता
ही कब है
जो खुद पर इठला सकें
प्रायोगिक वस्तुएं
निजी अस्तित्व नहीं रखतीं
उन्हें सिर्फ
इस्तेमाल किया
जाता है
अधिकार सिर्फ
मालिक का होता है
किरायेदार तो सिर्फ
ज़िन्दगी भर
किराया देते हैं
तीलियाँ तो सिर्फ
जलने के लिए
होती हैं
जिनसे सिर्फ
रौशनी की जाती है
तीलियों को
सहेजा नहीं जाता
सिर्फ उपयोग किया
जाता है
आखिर तीलियों की
इससे आगे
हैसियत ही क्या है
चलती फिरती
ज़िन्दा लाशें
मुस्कुराने को मजबूर
इज्जत बचाने को मजबूर
अदृश्य बेड़ियों में जकड़ी
अपने वजूद से लड़तीं
समाज की बलि वेदी पर
खुद को होम करतीं
पति और बच्चों
की चाहतों पर
कुर्बान होतीं
अपनी इच्छाओं
आकांक्षाओं को
ज़हर के घूँट पिलातीं
बेशक मिट जायें
मगर
कुछ वजूदों की
देह से आगे गणनाएं नहीं की जातीं
36 टिप्पणियां:
सुन्दर पंक्तियाँ हैं
स्त्रियों की दुर्दशा पर गहन रचना ...बस तीलियों की तरह इस्तमाल होती हैं ..पर ये ऐसी तीलियां हैं जो बार बार प्रयोग की जा सकती हैं ...वजूद कुछ भी नहीं ..
कुछ वजूदों की
देह से आगे गणनाएं नहीं की जातीं ...
गहन भावों के साथ सशक्त रचना ।
तीलियाँ तो सिर्फ
जलने के लिए
होती हैं
जिनसे सिर्फ
रौशनी की जाती है
तीलियों को
सहेजा नहीं जाता
सिर्फ उपयोग किया
जाता है
आज इंसान की हालत इन तीलियों से भी बदतर है ..उसकी तो इतनी भी कीमत नहीं ..बस जब दिल किया मार दिया उसकी संवेदनाओं को ठेस पहुंचा दी ..वह शरीर तो है लेकिन कभी भी आत्मिक स्तर पर उसे नहीं समझा जाता ...आपकी रचना विविध भावों का संगम है ....आपका आभार
देह के आगे आशायें हैं।
acchi rachna..
vazood to ekta se milta hai
10 tilli ko jalaayenge to khud hi jal jaayenge ya badal jaayenge..
ekta me bal hai..
vazood sab ka rahta hai....
par waqt kisi ka nahi...
Bhavatmak...
कम्पित कर देने वाली पोस्ट है यह......ये बात अब भी काफी हद तक सही है |
बहुत गहरी बात की हे वन्दना जी आपने ...शुक्रिया
कविता कम शब्दों में बहुत कुछ कहने की कला है और उसका सबसे बेहतरीन उदहारण है यह कविता जिसमे नारी के मन की पूरी बात, बस कुछ ही शब्दों में कह दी गई है... आखिरी पंक्तियाँ पूरी कविता का निचोड़ कह रही हैं...
"बेशक मिट जायें
कुछ वजूदों की
देह से आगे गणनाएं नहीं की जातीं".... आपकी सबसे अधिक प्रभावित कर देने वाली कविता !
कुछ वजूदों की
देह से आगे गणनाएं नहीं की जातीं
hamare waqt ki kadvi sachhai h yeh...
bahut khoob..
गहन भावों के साथ सशक्त रचना ।
"कुछ बजूदों की
देह के आगे गणनाएं नहीं की जाती."
कितना सच कहा है. स्त्रियों कि स्थिति का सही चित्रण किया है. गंभीर विषय को उठाने के लिए बधाई.
कल "शनिवासरीय चर्चा" में आपके ब्लाग की "स्पेशल काव्यमयी चर्चा" की जा रही है...आप आये और अपने सुंदर पोस्टों की सुंदर काव्यमयी चर्चा देखे और अपने सुझावों से अवगत कराये......at http://charchamanch.blogspot.com/
(30.04.2011)
कुछ वजूदों की
देह से आगे गणनाएं नहीं की जातीं ..
स्त्रियों की स्थिति समाज में किस हाल में है झकझोरती हुई रचना , बधाई
बेजोड़ , और बेहतरीन रचना वंदना जी
behtrin prastuti...
अति सुंदर रचना...
कुछ वजूदों की
देह से आगे गणनाएं नहीं की जातीं ...
सच को लिए मर्मस्पर्शी चित्रण
समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
देशभक्त हिन्दू ब्लोगरो का पहला साझा मंच - हल्ला बोल
बेहतरीन तुलना तीलियों से.
उत्तम रचना...
तीलियाँ तो सिर्फ
जलने के लिए
होती हैं
जिनसे सिर्फ
रौशनी की जाती है
तीलियों को
सहेजा नहीं जाता
सिर्फ उपयोग किया
जाता है
नारी की दशा का वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
हार्दिक शुभकामनायें।
कविता की वितृष्णा , नफरतें , उदासियाँ झकझोरती हैं , मगर कुछ अंशों में यह सच्चाई भी है ही ...
बार -बार जलाई जाने वाली ये तीलियाँ ...
नवीन बिम्ब ...
अधिसंख्य स्त्रियों की दशा पर अच्छी रचना !
दोस्तों, क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना.........
भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से (http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post_29.html )
उफ़....मारक....
बहुत ही अच्छी मर्मस्पर्शी रचना , यथार्थ का सटीक चित्रण । बधाई ..
Vandana Ji..hamein yah sthiti badalni hogi...deh se neh ka koyi sambandh nahi...jab ham sthool se sookshm ki oar badhenge tabhi shayad apni samvednaon ko gadhenge...
aapne achha mudda uthaya hai...badhayee.
तीलियाँ तो सिर्फ
जलने के लिए
होती हैं
जिनसे सिर्फ
रौशनी की जाती है
तीलियों को
सहेजा नहीं जाता
सिर्फ उपयोग किया
जाता है
naari sab kuchh phir bhi vajood nahi .......ati sundar ,prantu vicharniye bhi .
bahut achchi lagi.....
बहुत ही मार्मिक लिखा है वंदना जी ।
this is the story of every women
अधिकार सिर्फ
मालिक का होता है
किरायेदार तो सिर्फ
ज़िन्दगी भर
किराया देते हैं
--
बहुत ही प्रेरणादायी रचना!
वाकई में देह से आगे गणनाएं नहीं की जातीं!
बहुत ही प्रभावशाली रचना .....
बड़ी बेबाकी से यथार्थ का नग्न चित्र प्रस्तुत करती आपकी कविता ..आज के सभ्य समाज को झकझोर कर रख देने में सक्षम है |
अभिव्यक्ति ......सशक्त
bahut gahan bhaavon ko darshaati hui rachna.
कुछ वजूदों कि देह से आगे.........
हमारे सभ्य समाज में ही न जाने कितने उदाहरण मिल जायेंगे..
सार्थक रचना...
आप की भावाभिव्यक्ति ज़बर्दस्त है
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