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शनिवार, 16 अप्रैल 2011

सिर्फ निशाँ होते हैं

तुम पुकार लो
तो रुक भी जाऊं
तुम निहार लो
तो संवर भी जाऊं
तुम आ जाओ
तो साथ चल भी दूँ
तुम बढाओ हाथ
तो थाम भी लूँ
तुम दिखाओ ख्वाब
तो देख भी लूँ
और पलको पर
सजा भी लूँ
मगर तुमने कभी
पुकारा ही नहीं
उस नज़र से
निहारा ही नहीं
वो हक़ जताया ही नहीं
कभी हाथ बढाया ही नहीं
फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............

43 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Uf! Kitnee kasak hai!!

Shah Nawaz ने कहा…

दिल की गहराइयों से लिखी हुई रचना है... बहुत खूब!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............

बहुत ही बढ़िया .

सादर

संजय भास्‍कर ने कहा…

वन्दना जी आप भी शब्‍दों को हीरे की तरह ही तराशती हैं

संजय भास्‍कर ने कहा…

एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आपकी कविता उद्वेलित कर देती है... सुन्दर कविता यह भी

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आंतरिक मनोभावों को शब्दों मे पिरोया है...बहुत सुंदर।

Hemant Kumar Dubey ने कहा…

वो हक़ जताया ही नहीं
कभी हाथ बढाया ही नहीं
फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............

बहुत ही स्पष्ट शब्दों में बयां दर्द भरी सुन्दर अभिव्यक्ति |

डॉ टी एस दराल ने कहा…

काश ! ऐसा होता तो वैसा होता ।

फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?

सही है । आगे बढ़ना ही सही है ।

Arun sathi ने कहा…

दिल से लिखी गई रचना दिल को छू गई। आभार।

Sunil Kumar ने कहा…

सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ...
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति,बधाई

sangeeta jain ने कहा…

chalna hi jindgi hai aur intjar ke modh nahi hote .bahot khub

mridula pradhan ने कहा…

bbhawon se bhari hui sundar kavita....

केवल राम ने कहा…

आप लिखो कविता
तो पढ़ भी लूँ
आप करो कल्पना तो
कुछ सोच भी लूँ

xxxxxxxxxxxxxxxxxx

रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते .....!

आदरणीय वंदना जी
बहुत मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ लिखी हैं आपने ....आपका आभार

ज्योति सिंह ने कहा…

सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............
is intjaar ko mahsoos har koi karta hai magar kam ya door nahi .....sundar

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अरे वाह!
आपने तो बहुत सरलता से
जीवन दर्शन को समझा दिया इस रचना में!

Udan Tashtari ने कहा…

वाह! क्या बात है...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति।

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

marmik

Dr Varsha Singh ने कहा…

सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते

सुंदर रचना के लिए साधुवाद!

***Punam*** ने कहा…

हक जताने वाले हक देना नहीं जानते..

इसलिए किस मोड़ पर किसका इंतज़ार...?

और किस लिए ?

खूबसूरत एहसास...

भावपूर्ण चित्रण....!!

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत भावपूर्ण ..मन को छूने वाली ....

POOJA... ने कहा…

अब तो निशाँ भी फीके पड़ने लगे हैं...

shikha varshney ने कहा…

इंतज़ार के निशान होते हैं मोड नहीं होते...
वाह क्या बात कही है.

डॉ. नागेश पांडेय संजय ने कहा…

प्रशंसनीय अभिव्यक्ति . आपके भाव मन को सहज स्पर्श करते चलते है .माँ वाग्देवी की सहज अनुकम्पा है आप पर . बधाई .
http://abhinavanugrah.blogspot.com/

Patali-The-Village ने कहा…

दिल की गहराइयों से लिखी हुई रचना|धन्यवाद|

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूब ...धाराप्रवाह लिखा है ..

विशाल ने कहा…

बहुत ही खूब.

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुंदर रचना, धन्यवाद

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

वो हक़ जताया ही नहीं
कभी हाथ बढाया ही नहीं
फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ..............

बहुत सुंदर .....

Vikrant ने कहा…

बहुत खूब.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते

भावनाओं के समंदर में उठी लहरें जैसे धीरे-धीरे शांत हो रही हों।
कविता देर तक सोचने के लिए विवश कर रही है।

हरीश सिंह ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

इतंजार के मोड़ नहीं हुआ करते।
...बहुत खूब।

रचना दीक्षित ने कहा…

दिल की गहराईयों से निकलती कविता का अप्रतिम प्रवाह. बहुत सुंदर.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

गौरव शर्मा "भारतीय" ने कहा…

वो हक़ जताया ही नहीं
कभी हाथ बढाया ही नहीं
फिर कैसे , कौन से मोड़ पर
रूकती और किसके लिए?
सिर्फ निशाँ होते हैं
इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ......

वाह वाकई बेहतरीन भावाभिव्यक्ति....आभार

वाणी गीत ने कहा…

मैं गीत कोई गा लेती , जो तुम गुनगुना जरा लेते ...
मैं हंस देती खिलखिलाकर , जो तुम मुस्कुरा जरा देते !

बेनामी ने कहा…

भावनाओ के सैलाब में बहती हुई पोस्ट.....प्रशंसनीय|

abhi ने कहा…

इंतज़ार के मोड़ नहीं हुआ करते ....
-waah :)