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सोमवार, 4 अप्रैल 2011

मुझे पता था

मुझे पता था
तुम वापस आओगे
मगर मेरे रंगों को
किसी अंधे कुएं मे
झोंककर
अपनी विवशताओं
लाचारियों की
दुहाई देते
क्या तब भी
ऐसा ही कर पाते
जब ये पुनरागमन
मेरा होता?
क्या स्वीकारते मुझे
उसी स्नेह,अपनेपन से
जैसी उम्मीद
मुझसे रखते हो?
जानती हूँ
कोई जवाब नही है
तुम्हारे पास
और ना ही
आज के किसी
मर्द के पास
क्योंकि
ये शक्ति ,
ये ताकत
ये धैर्य
ये क्षमाशीलता
तो सिर्फ़
औरत का
गहना होती है
तुम कहाँ खुद को
मेरे धरातल तक
ला सकते हो
कमजोर हो तुम
बहुत कमजोर
और मै
शक्ति…………
धारती हूँ ना
धरणी हूँ
मगर कभी सोचना जरूर
क्या तुम कभी
बनना चाहोगे
शक्ति, धरणी
एक नारी
सोचना जरूर

50 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

बहुत ही गहन भावों का समावेश ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नारी ही हर कृत्य को क्षमा कर पाती है ...लेकिन यही लोग उसकी कमजोरी मान लेते हैं ...तुम्हारी इस रचना को पढ़ कर "अर्थ " पिक्चर याद आ गयी

दिगम्बर नासवा ने कहा…

नारी जितनी गहराई संवेदनशीलता पुरुष में कहाँ है ...
बहुत ही भाव पूर्ण रचना है ...

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

कमजोर हो तुम बहुत कमजोर....सच में एक पुरुष किसी भी दृष्टिकोण से नारी शक्ति के समकक्ष भी नहीं है.......नारी तो भावनाओं की उत्कृष्ट कड़ी है.....जैसी कोमल नारी वैसी ही सुंदर और कोमल आपकी रचनायें वंदना जी....बेहतरीन।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

behad samvedansheel kavita... kavita me ant me bahut mahatwapoorn prashn uthaya hai aapne..

Aruna Kapoor ने कहा…

...एक नारी की व्यथा को सुंदर श्ब्दों में व्यक्त किया है आपने वंदना!...बधाई एवं शुभ-नवरात्री!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

वाह क्या बात है ! बहुत सुन्दर ... नारी की शक्ति का सुन्दर वर्णन !

mridula pradhan ने कहा…

sochne ke liye mazboor karti hui bemisaal kavita.....

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aisa hai kya....??
ये शक्ति ,
ये ताकत
ये धैर्य
ये क्षमाशीलता
तो सिर्फ़
औरत का
गहना होती है

fir mardo ke paass kya dekha aapne..unko bhi to shabdo me byan kartin...:)

Deepak Saini ने कहा…

बहुत ही गहन भावों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

बाबुषा ने कहा…

Navraatri ke pahle din Shakti rupa ke darshan diye aapne ! Pranaam karti hun aapko !

Kailash Sharma ने कहा…

क्या तब भी
ऐसा ही कर पाते
जब ये पुनरागमन
मेरा होता?
क्या स्वीकारते मुझे
उसी स्नेह,अपनेपन से
जैसी उम्मीद
मुझसे रखते हो?
...
पुरुष की दोहरी सोच पर सटीक टिप्पणी..बहुत गहन भाव..लाज़वाब प्रस्तुति..

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

क्या तुम कभी
बनना चाहोगे
शक्ति, धरणी
एक नारी
सोचना जरूर

बहुत ही बढ़िया!

सादर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही गहरे भाव, मन की नीरवता से उत्पन्न।

shikha varshney ने कहा…

गहन भावों की सहज अभिव्यक्ति.

बेनामी ने कहा…

नारी शक्ति को अपना सलाम.....पर भई हम मर्दों से इतनी खुंदक क्यूँकर है ?

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.blogspot.com/

डॉ टी एस दराल ने कहा…

नारी शक्ति का अच्छा और सच्चा प्रदर्शन ।

ZEAL ने कहा…

Very inspiring and beautiful creation .

kshama ने कहा…

Nahee...aisi kshama sheelta kewal ek naaree me ho saktee hai.

संजय भास्‍कर ने कहा…

नारी की शक्ति का सुन्दर वर्णन !

Sunil Kumar ने कहा…

एक नारी की व्यथा को व्यक्त किया है ...बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा गवेषणा के साथ लिखी गई एक शानदार रचना!
--
मेरे विचार से कोई भी पुरुष नारी बनना नहीं पसंद करेगा!
--
यदि नारी बन गया तो हुक्म किस पर चलाएगा?

amit kumar srivastava ने कहा…

naari -purush kaa satat sangharsh par dono ek dusre ke purak...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

और मै
शक्ति…………
धारती हूँ ना
धरणी हूँ
मगर कभी सोचना जरूर
क्या तुम कभी
बनना चाहोगे
शक्ति, धरणी
एक नारी
सोचना जरूर

सच में वंदनाजी नारी के मन का द्वन्द ...वेदना नारी बनकर ही समझा जा सकता है.... बहुत संवेदनशील भाव लिए रचना

Rakesh Kumar ने कहा…

नारी शक्ति को शत शत नमन.
नवसंवत्सर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ

वाणी गीत ने कहा…

नारी शक्ति के साथ कोमल भाव रखने वाली तथा क्षमाशील भी है ...यह सही है की एक ही घटना पर पुरुष और स्त्री की प्रतिक्रिया अलग हो सकती है ...
बेहतरीन !

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन.

Anupama Tripathi ने कहा…

मुझे पता था
तुम वापस आओगे
मगर मेरे रंगों को
किसी अंधे कुएं मेझोंककर
अपनी विवशताओं
लाचारियों की
दुहाई देते
क्या तब भी
ऐसा ही कर पाते
जब ये पुनरागमन
मेरा होता?

वाजिब प्रश्न है ....
पुरुष की मनोदशा और अपनी व्यथा सुंदर शब्दों में व्यक्त की है ....

अजय कुमार ने कहा…

नारी का सुंदर रेखांकन

Unknown ने कहा…

ह्रदय के गहन भावो को उकेरती एक प्रश्न उठाती रचना, स्त्री सहनशीलता की मूर्ति होती है, स्त्री कोई नहीं हो सकता बिना जन्म पाए बधाई भी शुभकामनाये भी

Arun sathi ने कहा…

sundar

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

बहुत ख़ूब वन्दना जी ,
बिलकुल सच कहा आप ने वो धैर्य ,वो सहनशीलता ,प्यार का वो अंदाज़ जो नारी की विशेषता है अधिकतर पुरुषों में नहीं
और पुरुष ने इन शक्तियों को नारी की कमजोरी मान लिया है ,उसे लगता है कि यदि नारी नफ़रत या ignorence का जवाब भी प्यार से दे रही है तो ये उस कि कोई मजबूरी है
एक सशक्त रचना !

Shekhar Suman ने कहा…

बहुत ही सुन्दर वंदना जी....

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

नारी की अपरिमित शक्ति की विवेचना करती हुई एक श्रेष्ठ कविता।
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

क्या ऐसा तब भी कर पाते
जब ये पुनरागमन
मेरा होता
.............वाह क्या सटीक और करारी चोट

धारती हूँ ना
धरणी हूँ
................बहुत खूब

वृजेश सिंह ने कहा…

gahna sabd ka upyog karke aapne kuch progressive womens ko piche is kavita ki duniya se bahar kar diya hai. jo swabhavikta me yakin kart6i hain. waise hamare liye aapke sman ho pana mushkil hai, kyunki in sare gahnon ki bhavnaonko nibha pana aasaan nahi hai. thanks.

Sadhana Vaid ने कहा…

एक ज्वलंत प्रश्न उठाती अत्यंत गहन गंभीर रचना ! जितना विशाल हृदय स्त्री का होता है उसकी सीमाओं को छू पाना भी पुरुष की क्षमताओं के बाहर है ! नारी शक्ति को प्रणाम और इतनी विशिष्ट कविता के लिये आपको बधाई एवं आभार !

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

वाकई लाजवाब और बहुत गहन रचना....

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

bahut sundar...

तदात्मानं सृजाम्यहम् ने कहा…

मैं डर जाता हूं​
​इतनी कविताएं ​
​मर्दों के खिलाफ​
​कविता से ज्यादा डर​
​उस मन से​
​जिसमें ये विचार पनपते हैं...​
​खुदा करे कि सब मिलकर चलें​
​साथ जिएं​
​स्त्री हो या पुरुष​
​​

नीलांश ने कहा…

yes,can't match anywhere...


and as a human all r same
everywhere anytime...

but we should also understand that by soul we are same..

Rajesh Kumari ने कहा…

naari evam purushon ke man ko jhakjhor kae dene vaali yehe rachna sarahniye hai.

नीलांश ने कहा…

main to bahut asahay mahsoos karta hoon kabhi kabhi...par chalna hi zindagi hai aur chalte hi jaa rahi hai ...with grace ,with memories and with the poems...

ज्योति सिंह ने कहा…

धारती हूँ ना
धरणी हूँ
मगर कभी सोचना जरूर
क्या तुम कभी
बनना चाहोगे
शक्ति, धरणी
एक नारी
सोचना जरूर
bahut mushkil sawal khada diya unke saamne ,ye har kisi ke liye aasaan nahi .rachna wakai laazwaab hai vandana ji .

रचना दीक्षित ने कहा…

नारी का द्वन्द और वेदना का जो योग उसके जीवन में रहता है पूरा जीवन उसी संघर्ष में गुजर जाता. सुंदर भावनात्मक प्रस्तुति.

बधाई एवं शुभकामनाएँ नवसंवत्सर की.

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

हर वो भारतवासी जो भी भ्रष्टाचार से दुखी है, वो देश की आन-बान-शान के लिए समाजसेवी श्री अन्ना हजारे की मांग "जन लोकपाल बिल" का समर्थन करने हेतु 022-61550789 पर स्वंय भी मिस्ड कॉल करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे. यह श्री हजारे की लड़ाई नहीं है बल्कि हर उस नागरिक की लड़ाई है जिसने भारत माता की धरती पर जन्म लिया है.पत्रकार-रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

Ankur Jain ने कहा…

behad shandar........jitni tareef karun utni kam..

Ankur Jain ने कहा…

behad shandar........jitni tareef karun utni kam..

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

ये शक्ति ,
ये ताकत
ये धैर्य
ये क्षमाशीलता
तो सिर्फ़
औरत का
गहना होती है
lazavaab
AGAZAL