माना चाहत की डोर
बाँधी है तूने मुझसे
मगर मैंने नहीं
माना तेरी चाहत
पूजती है मुझे
माना मेरे जिक्र से
बढ़ जाती हैं धडकनें
माना पवित्र है
तेरी चाहत
माना नहीं है वासना
का लेश इसमें
माना मेरे ख्याल ही
तेरी धरोहर हैं
माना मेरे लिए ही
तू जिंदा है
माना मैं ही
तेरी ज़िन्दगी हूँ
माना तेरी हर साँस
मेरे नाम से चलती है
मगर फिर भी
नहीं लगता अच्छा
कोई मेरे वजूद को
अपने अहसासों
में भी छुए
47 टिप्पणियां:
अहसासों की सुन्दर बानगी...
वन्दना जी
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
हम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं.
.शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने .....प्रशंसनीय रचना।
वजूद अर्थात अस्तित्व पर
एक सुन्दर रचना रची है आपने!
--
पूरी रचना में भावनाओं से हटकर
परिकल्पनाओँ का बढ़िया समावेश किया गया है!
मग़र अच्छा नहीं लगता कोई अहसास मेरे वजूद को छुए बहुत सुंदर बधाई
रचना तो बहुत सुन्दर है पर इतना बेरुखी क्यूँ ये समझ नहीं आया ...
सुंदर रचना वंदना जी ... बधाई
प्रेम को कितने आयाम देकर लिखा जा सकता है.. ये कोई आपसे सीखे... प्रकृति में जितने रंग हैं.. जितनी नदी है.. जिनती विविधता है.. जितने भाव है.. आप सब अपनी कविताओं में रख देती हैं.. पाठक को बहा ले जाती हैं.. सुंदर कविता..
माना कि एहसासों में छू ही ले तो क्या कर लोगी ? :):)
अपने मन में उठते उद्वेग को प्रवाहमय बहा दिया है ...सुन्दर अभिव्यक्ति
बड़ी तल्लीनता से लिखा आपने....बहुत खूबसूरत भाव..बधाई.
बहुत मार्मिक !
क्या सुन्दर बिम्ब है,’सानिध्य की दूरी’ का!वाह!
@संगीता जी,
’सानिध्य की दूरी’ घटाई या बढाई नहीं जा सकती यही तो उसकी खूबी है! एक भाव देखें:
"दूरियां खुद कह रही थीं,
नज़दीकियां इतनी न थी।
अहसासे ताल्लुकात में,
बारीकियां इतनी न थीं।"
पूरी बात के लिये देखें:
http://sachmein.blogspot.com/2009/06/blog-post_09.html
bahut khoob. !
सुन्दर बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ............बधाई !!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
kya likhun !!!!!!!!!!!!!
वंदना जी,
वाह जी वाह ........'माना'.......कोई मेरे वजूद को अहसासों से भी छुए.......एक बात सिर्फ ......किस्मत वालों को मिलता है प्यार के बदले प्यार.........समेट लो इसे ...जी लो इसे |
....भावनाओं की अति सुंदर अभिव्यक्ति!...मर्म को छू लेने वाली रचना!...
अहसासों को सांस देती रचना.
अहसासों की खूबसूरत अनुभूति को समेटती सुन्दर कविता....बधाई.
बहुत ही खुबसूरत..सुन्दर शब्दों का प्रस्तुतीकरण...
आपका लिखने का यह अंदाज़ बनाये रखें.
मेरे ब्लॉग पर इस बार
एक और आईडिया....
... बहुत खूब .... प्रसंशनीय रचना !
माना मैं ही
तेरी ज़िन्दगी हूँ
माना तेरी हर साँस
मेरे नाम से चलती है
मगर फिर भी
नहीं लगता अच्छा
कोई मेरे वजूद को
अपने अहसासों
में भी छुए
सच्चाई बिलकुल यही है....अपनी पहचान पर किसी की परछाईं भी गवारा नहीं होता.
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना! बधाई!
बात कुछ जमी नहीं।
मन के भाव सुन्दरता से पिरोये हुये।
very very good
बहुत अच्छ लिखा है आपने ………………मान लिया कि आपके कविता मे बह्त कुछ है
विचित्र विरोधाभास |
अहसास की सुन्दर रचना
गहराई से अभिव्यक्त किये गए भाव |बहुत बहुत बधाई इतनी सुंदर रचना के लिए |
आशा
जब इतना कुछ माना जा रहा है तो मान क्यों नहीं लेती...:):):)
सुंदर बानगी.
ग़लत है कि कि मैं डूबना चाहता हूं
मुख़ालिफ़ मगर कुछ हवा चाहता हूं
अभिव्यक्ति की प्रस्तुति सुंदर है।
vandana ji ,deri ke liye kshama.
kavita bahut sundar ban padhi hai . prem ke anek rangoi ko samete hue sahaj abhivyakti hai .. lekin jo baat mujhe achi lagi ,wo ye hai ki aapne jo antim panktiya likhi wo atulniy hai , wo prem ki sahi paribhaasha hai ,ki ek dusare par apne aapko na laadte hue bhi prem ko jiya jaaye ..
anupam rachna.. padhkar osho ki ek kitaab ki panktiyan yaad aa gayi ..
badhayi
लाज़वाब अहसासों की सुन्दर अभिव्यक्ति...आभार..
anamika di se sehmat...:P jab itna maan liya to maan lena chahiye .... ya tagdee see warning deni chahiye ...P
सुन्दर रचना..
आपकी रचना ने सारा शगुफ़्ता की याद दिला दी. शानदार
भावनाओं को गहराई तक जा कर लिखा है आपने .... बहुत लाजवाब ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
bahut sundar rachnaa... ahsaaso kaa duriyo kaa riste kaa astitv kaa sundar chitran baareek kalam se... bahut sundar likha hai vandnaa ji... Shubhkaamnayen
सुन्दर रचना .
वाह!!! सुन्दर बिम्ब बहुत सुंदर प्रशंसनीय रचना।
वाह, कित्ती प्यारी कविता है...अच्छी लगी.
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'पाखी की दुनिया' के 100 पोस्ट पूरे ..ये मारा शतक !!
मगर फिर भी अच्छा नहीं लगता की कोई मेरे वजूद को एहसासों से छुए ...
मन विश्वास है तुम्हे अपने निश्छल से प्रेम का मगर फिर क्यूँ उसका आभास पाना चाहते हो ...
बहुत सुन्दर ..!
हमें तो संगीता स्वरुप जी की टिप्पणी भा रही है !
vaah .. shabd nahi hai tareef ke liye.. kya kahoon.. vaah..
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