आज रोटी बनाते -बनाते
तुम्हारे ख्याल ने
आकर पुकारा
और हाथ बेलन
पर ही रुक गया
और ख्याल मुझसे
आकर उलझ गया
मुझे अपने साथ
उडा ले चला
जहाँ तुम्हारा साथ था
हाथ में हाथ था
सपनो का महल था
बगीचे में झूला पड़ा था
मैं झूल रही थी
तुम झुला रहे थे
हवा के संग
मीठी - मीठी
सरगोशियाँ किये
जा रहे थे
आँखें मेरी बंद थी
और दिल में एक
उमंग थी
प्रेम का चटक रंग
होशो- हवास भुला
रहा था
कहीं कोई भंवरा
किसी कली पर
मंडरा रहा था
जिसे देख दिल
धड़क - धड़क
जा रहा था
ये कैसा
मदहोश करता
पल था
प्रेम के आँगन में
मन मयूर
नृत्य किये
जा रहा था
और तेरी
रूह के आगोश में
सिमटे जा रहा था
तभी ना जाने
कैसे एक झोंका
हवा का आया
और तवे पर जलती
रोटी ने हकीकत का
आभास कराया
अब कभी चकले पर
अधबिली रोटी को
देख रही थी मैं
तो कभी
तवे पर जली रोटी
मुझे देख
हँस रही थी
"पागलों की सरदार" की
उपाधि दे रही थी
हाय ! दो रोटियों के बीच
आये उस ख्वाब को
अब मैं कोस रही थी
और हालत पर अपनी
मैं खीज रही थी
33 टिप्पणियां:
ओह ..दो रोटियों के बीच न जाने क्या क्या जल गया था ....अपनी सोच को सुन्दर शब्द दिए हैं
do roti ke bich ka pyar.........uff ye pyar bi kya kar baithta hai...:D
bahut khub Vandana jee.......kahan kahan se aise plot late ho aap!!:)
दो रोटियों के बीच भी कविता लिखी जा सकती है.. सोचा ना था.. जीवन के अनछुए पल को आपने छुआ है... ऐसा छुआ है कि मन में ना जाने कितने भाव जन्मे और रोटियों में तब्दील हो गए.. भूख बढ़ा गए.. मन को तृप्त कर गए... सुंदर कविता के लिए बहुत बहुत बधाई..
do rotiyon ke beech ki maarmik rachna.
ऐसे कीमती ख्याब को कोस कर आप बहुत अन्याय कर रही हैं वंदना जी। इसे कोसिए मत इसे दुलारिए।
वैसे आपका याद करने का यह अंदाज बहुत पसंद आया। पता चलता है कि रोटियां बेलती स्त्री केवल रोटियां नहीं बेल रही होती है,वह बेल रही होती है अपने सपने,सेंक रही होती है उन्हें हकीकत की आंच पर।
आपकी इस कविता की जली रोटी खाकर जो स्वाद आया है,उसने ऐसी रोटी मय कविता की चाह और बढ़ा दी है।
आप ऐसी रोटियां बेलती रहिए। शुभकामनाएं।
ये रोटियां भी न जो न करा दें थोडा :)..बहुत अछे तरीके से भाव संजोये हैं.
वंदना जी,
रचना बहुत अच्छी लगी ........सुनहरा ख्वाब.....पर ज़रा ध्यान से रोटी के साथ-साथ हाथ जलने का भी खतरा है |
तवे पर जली रोटी
मुझे देख
हँस रही थी
"पागलों की सरदार" की
उपाधि दे रही थी
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रचना वास्तव में बहुत सुन्दर रची है आपने!
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यह भी संयोग ही है कि अभी
अरुण सी राय जी की रचना भी
मैंने रोटियों पर ही पढ़ी है!
हमेशा की तरह भावपूर्ण रचना ... आभार
बहुत ही खुबसूरत... जाने कितने भाव, कितनी कहानियाँ..सब कुछ..
बेहतरीन....
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कविता का ये अंदाज़ बहुत पसंद आया।
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... bahut khoob ... behatreen rachanaa !
दो रोटियों के बीच पूरी एक कहानी कह दी आपने अपनी कविता में।...बहुत ही सुंदर कविता।
ओह ..दो रोटियों के बीच न जाने क्या क्या जल गया था .......
बहुत सुन्दर प्रभावपूर्ण रचना .... हार्दिक शुभकामनाएँ
अच्छी रोमांटिक रचना । भले ही ख्वाब में ही सही ।
दो रोटियाँ के बीच चिन्तन तो चलता रहता है, कई बार देखा है। पहली बार समझने का प्रयास कर रहा हूँ। आभार।
ye mn bhi kitna pagl hai ....
bahut 2 bdhai
vndna ji bahut sundr rchna aap ka meri rchnao ko nirntr apaar sneh milta rhta hai aap ka hridy se aabhar hai nirntr smvad bna rhe aap bahut prushrmi v lgn sheel hain sb se phle aap ne hi mujh jaise anam vykti ko apne chrcha mnch pr sthan diya v bad me sngeeta ji ne main aap dono ka hridy se aabhari hoon
ved vyathit
hmari snstha hai hm klm jis ki lgbhg masik goshthi gurgoan ya dehli me lgbhg hoti hai ek goshthi dr.sherjng grg ji ke nivas pr bhismpnn ho chuki hai ydi aap chahe to aap ka swagt hai dehli se kai log smmlit hote hain mera mail hai
dr.vedvyathit@mail.com
अति सुन्दर.......
दो रोटियों के बीच कितना जहाँ बसा और टूटा या जला पर सवाल रोटी पर आ कर अटक जाता है... आखिर रोटी जीवन की बुनियादी जड़ है... कविता बहुत सुन्दर और कुछ नए ख्यालो के साथ..... हकीक़त के कवी की मनोस्तिथि को बयां करती हवी... जब कवि मन काम करते करते बोलने लगता है... बहुत सुन्दर और सत्य
शिखा वार्ष्णेय जी से सहमत !
do rotiyo se vartmaan aur bhavisya ka achchha chitran kiya...
जली-अधजली, पकी-अधपकी, रोटियां हमे वस्तविक निर्माण की ओर पुख़्ता करती हैं। बिम्बों का उत्तम प्रयोग। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
ये रोटियां भी न....बहुत कुछ कह जाती हैं. सुन्दर कविता..बधाई.
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"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...
do rotiyon ke madhya kitna kuch kah gai ... bahut hi badhiyaa
sapno aur hakikat ke beech chal rahi zindagi ka bhavpoorn sajeev chitran
kavita aur zindgi ekroop ho gayee dikhti hai
sapno aur hakikat ke beech chal rahi zindgi ka bhavpoorn sajeev chitran kiya hai aapne !
yaheen kavya aur jeevan ekroop ho jata hai|
खाले पेट रोटी के बीच सिर्फ रोटी ही सोची जा सकती है ।
अच्छा लिखती हैं देवी जी
प्रणाम
कभी हमारे द्वारे भी आना
जै राम जी की
रोटियों के साथ साथ ना जाने क्या क्या जल गया.................सुन्दर विचारों के लिए धन्यवाद.
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!
आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
आपके बारे मै पड़ा आपके विचार जान कर ख़ुशी हुई हमे भी झूठ से बहुत नफरत है हम भी आपकी ही तरह बेबाक लिखना और सुनना पसंद करते हैं आपका लेख अच्छा लगा बधाई दोस्त !
vandana, kavita acchi bani hai , lekin ant shayad aur accha ho sakta tha . specially aakhri ki lines
हाय ! दो रोटियों के बीच
आये उस ख्वाब को
अब मैं कोस रही थी
और हालत पर अपनी
मैं खीज रही थी
padhte hue ham sab ek khawab me hi kho gaye ..aur ye aksar hota bhi hai .. lekin uske baad apne aapko kosna , kahin par sahi bhi hai , lekin is kavita ki sundarta ko hit karta hai ...
anyatha na lena mere comment ko . poem acchi hai ,sirf punch lines alga direction me hai ..
do rotiyon ke beech ka khawab,bahot sunder.
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