इश्क हुआ होगा कभी
राँझा को हीर से
मजनू को लैला से
फरहाद को शीरीं से
जिन्होंने इश्क को
इबादत बनाया
खुदा से भी पहले
जुबान पर
महबूब का नाम आया
खुदा और इश्क में जहाँ
ना फर्क नज़र आया
क्या कर सकेगा इबादत
तू भी महबूब की
बना सकेगा खुदा
अपनी मोहब्बत का
हो सकेगा कुर्बान
मोहब्बत की खातिर
दे सकेगा मोहब्बत के
खुदाई जुनून का इम्तिहान
रे पगले ! ये किस्से
कहानियों की बात और है
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे.............
राँझा को हीर से
मजनू को लैला से
फरहाद को शीरीं से
जिन्होंने इश्क को
इबादत बनाया
खुदा से भी पहले
जुबान पर
महबूब का नाम आया
खुदा और इश्क में जहाँ
ना फर्क नज़र आया
क्या कर सकेगा इबादत
तू भी महबूब की
बना सकेगा खुदा
अपनी मोहब्बत का
हो सकेगा कुर्बान
मोहब्बत की खातिर
दे सकेगा मोहब्बत के
खुदाई जुनून का इम्तिहान
रे पगले ! ये किस्से
कहानियों की बात और है
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे.............
49 टिप्पणियां:
सच में आज वो जुनून ही नहीं रहा..और ना ही उतने पैसे... हा हा हा ..... बहुत ही खुबसूरत रचना...
मेरे ब्लॉग पर इस बार ....
क्या बांटना चाहेंगे हमसे आपकी रचनायें...
अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...
http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html
"रे पगले ! ये किस्से
कहानियों की बात और है
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे............."
बहुत सही कह रही हैं आप.. ना तो वो प्रेम है.. ना ही वो ज़ज़्बा.. भाव के प्रवाह के साथ लिखी गई कविता.. सुन्दर !
bahut badhiya rachana ...abhaar
बेहद खूबसूरत प्रश्न रखा है आपने मोहब्बत करने वालों के आगे ।
:) :) यह विषय ज़रा अछूता ही रहा है ....पर किताबी ज्ञान जितना है उसके हिसाब से बहुत खूबसूरती से उकेरा है तुमने मुहब्बत करने वालों की दास्तान को ....
आज तो शायद मुहब्बत में मकबरा बनाना बहुत खर्चीला नहीं है ? वो भी शहंशाह था तो भाई बना दिया मकबरा ...वरना तो बेचारे पत्थर खाते रहे और दरिया में डूबते रहे ..
खैर ..मुहब्बत का दम भरने वालों के लिए प्रेरणादायक रचना ... :):)
सच है, अब लोग इतने पागल नहीं रहते प्रेम में।
वंदना जी,
सुन्दर रचना ..............काफी हद तक सहमत हूँ आपसे ...........पर आज का कड़वा सच ये है की लैला और मजनूं आज भी हैं पर लैला को मजनूं और मजनूं को लैला नहीं मिलती |
bahut hi yatharth avam sateek prastuti- karan jo ek bahut chhupe shabdo me apna prabhav chhodne me purntaya safal hai.
poonam
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
सच कहा ... मुहब्बत तो पाक पवित्र रिश्ता है ... जो खुदा के करीब ले जाता है ... इसकी नुमाइश क्यों करनी मकबरा ब्ना कर...
:) मैं जो कहना चाहती थी संगीता जी ने कह दिया :)..
अच्छी प्रस्तुति है.
wah wah!
kisse kahaniyon mein bhi to humei jaise paatr hai ;)
http://liberalflorence.blogspot.com/
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे.....
--
बहुत ही गहन विश्लेषण का परिणाम
इस रचना के माध्यम से हमारे सामने आया!
--
सुन्दर विचार!
--
बढ़िया रचना!
... bahut sundar !!!
aaj bhi ban sakte hain, mohabbat ke makbare.....
lekin jameen mahngee ho gayee hai..:P
ek baar fir se pyari see rachna Vandana jee.....:)
is mahangai me pet bharta nahi ,shauk ke liye paise jutte nahi ,aese me makbara ?us jamane me itne saadhan uplabdh nahi the to kharche bhi nahi rahe,aaj jimmedaaria itni hai ki pyaar karke bhi bhool jaata hai ,waqt badala to andaaj bhi badal gaya .ab chahkar bhi nahi mumkin ho pata .aap ki rachna prabhavshali rahi .
मैं भी वही कहना चाहता था जो संगीता स्वरुप और शिखा वार्ष्णेय जी नें कह दिया :)
मोहब्बत करना तो अच्छी बात है । पर उसमे कुर्बान होना , पागलपन । जब तक कि वो कुर्बानी देश पर न हो ।
मुहब्बत ही नहीं रही तो उसके मकबरे कहाँ से आएंगे ....
बेहतरीन रचना !
साहिर साहब भी कह गए हैंः
इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे!
Aaj to na jana kin malbon ke neeche muhabbat dabi padi rah jati hai!
Bahut khoob likha hai!
सच ही कहा है ..आज वो बात नहीं रही की आज कोई महूबत की खातिर इस तरह कुर्बान हो जाए... कविता बहुत सुन्दर
इमरान जी की बात १०० फीसदी सच - समर्थन जाहिर करुँगी
यूँ तो मैं वो नहीं कहना चाहता, जो संगीता जी, शिखा जी, और अली साहब ने कहा, मगर ये कहने की बातें खूब चल रहीं है, तो हम भी चलिए वो ही कह देतें है, जो हम नहीं कहना चाहते ...
बहुत अच्छी रचना है
मक़बरे क़ब्रें हैं। फिर भी,आपने ग़ौर किया होगा,कोई वहां कोई यह सोचकर नहीं जाता कि वह मज़ार देखने जा रहा है। कोई लाश भी है अन्दर,यह भाव ही नहीं रहता। यह मोहब्बत की ही ताक़त है कि मक़बरे भी प्रेम की धरोहर बन सके हैं।
सुन्दर रचना..बात तो सच है आज के लिए.
छंदमुक्त कविताओं में आप अपने विचारों को पिरो लेती हैं. बढ़िया है.
कुँवर कुसुमेश
समय हो तो मेरा ब्लॉग भी देखें:kunwarkusumesh.blogspot.com
बहुत सुन्दर !
बहुत सुन्दर रचना वन्दना जी ,
दो शब्द ;
ईंट-गारा सीमेंट
सब महंगे हो गए,
ऊपर से
लेबर-ठेकेदार के नखरे !
इस कमरतोड़ महंगाई में
कोई बनाए भी भला कैसे
मुहब्बत के मकबरे !! :)
बहुत ही खूबसूरत एवं बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
dabaaye jaaten hai "time capsule'ab isk ke .
veerubhai
khwaabon me bhi hota hai ek taajmahal , khwaab dekhe to koi
"रे पगले ! ये किस्से
कहानियों की बात और है
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे...........
सच कहा है ..आज वो बात नहीं रही....ना तो वो प्रेम है.. ना ही वो ज़ज़्बा.
हमारे ब्लॉग पर भी आये,
ये किस्से
कहानियों की बात और है
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे........
बहुत सही आज कल कहाँ है वो प्रेम के मंजर बहुत बढ़िया लिखा आपने शुक्रिया
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे.............
मकबरें बने न बने मुहब्बत बरकरार रहे
sunder bhavabhivyakti...sadhuwad...
"रे पगले ! ये किस्से
कहानियों की बात और है
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे............."
सही कहा वन्दना। आज वो रुहानी प्यार है भी कहाँ। बधाई इस रचना के लिये।
मेरा ये ब्लाग भी देखें
www.veeranchalgatha.blogspot.com
"रे पगले ! ये किस्से
कहानियों की बात और है
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे............."
"रे पगले ! ये किस्से
कहानियों की बात और है
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे............."
.......आज मोहब्बत में भी दिखावा जो भरा है... कहाँ से बनेगे मकबरे!
.. मोहब्बत का झूठा दिखावा करने वालों के लिए प्रेरणादायक रचना ...
जाने क्यूं ये कलम आजकल प्रेमगीत से डरती है..
प्रिय के मोलतोल में होते हार-जीत से डरती है।
अब प्रेम के शब्दार्थ और भावार्थ में बहुत अन्तर आ गया है। अब जहां प्यार पर एक मुकम्मल गजल भी ना बन पा रही हो, वहां ताजमहल की उम्मीद तो बेमानी ही है।
प्रेम अब उन्हीं मकबरों में दफन हो गया है।
बहुत सुंदर रचना...
आज कल बहुत महंगाई हें रे..और दो गज जमीन की कीमत भी बहुत ज्यादा...उफ़ कैसे हो पायेगा भला ?सोचो भी मत.
मोहब्बत के आधुनिक व्यावहारवादी कटु यथार्थ को बड़ी खूबी के साथ अभिव्यक्त किया है ! सुन्दर रचना ! बधाई !
Hmm junoon aur pyar to kam nahi hua magar bas ye hai k aaj k laila majnoo ya to zimmedariyo se haar jate hain ya fir honour killing k naam par maar diye jate hain... Aur raha makbaro ka sawaal to aaj ka shahjehaan 2 june ka khana la de wo bhi kam nahi h.. nice poem...
मैं ताज बनांवा कीदे लई, मेरी मुमताज बेवफा है...
मेरे ब्लॉग पर मेरी नयी कविता संघर्ष
Bahut acchi rachna hai.
jabardasht sacchayi /....
"रे पगले ! ये किस्से
कहानियों की बात और है
इश्क के इम्तिहान की
बात और है
आज नहीं बनाये जाते
मोहब्बत के मकबरे.....
ये किताबो के किस्ससे फसानो की बाते
निगाहों की झिलमिल ,जुदाई की राते
मोहब्बत की कसमे,निभाने के वादे
ये धोका वफ़ा का, ये झूटे इरादे .....
बहुत सुंदर और बहतरीन रचना....
aaj pyar he hi kahan jo mohbbat ke makbare bana den. aaj ki mohabbat hi makbaro ke uper khadi he.
एक टिप्पणी भेजें