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मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

जब सवाल करने का हक हो ?

कोई चीत्कार 
सुनी नहीं 
मगर फिर भी
चीत्कार होती है 
जो बिना सुने 
भी सुनाई देती है
अंतर्मन को 
झकझोरती है
सागर के फेन 
सा जीवन 
उसमें भी
वक़्त के तरकश में 
दबी , ढकी , 
अंधकार में डूबी 
कुछ वीभत्स करती
आत्मा को 
झिंझोड़ती आवाजें
 बिना कहे भी
बहुत कुछ 
कह जाती हैं 
उस अंधकार की
कालकोठरी में
चीत्कारती हैं
मगर उन्हें 
वहीँ उन्ही 
तहखानो में 
दफ़न कर दिया 
जाता है
जवाब तो तब मिले
जब सवाल करने 
का हक हो  ?

28 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

javab tu tab mile jab sawal karne ka haq mile kya bat hai kya bat hai bahut badiya

Fauziya Reyaz ने कहा…

waah, waah

bahut khoob

Apanatva ने कहा…

bahut badiya par ab zamana badal raha hai.ye nayee peedee chup bhogane walo me nahee............

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

bhut behtreen jabaa to tab mile jab swaal karne ka hak ho


antrman ki vedna aur davi huyi ichaao ki had vataati rachna
saadar
praveen pathik
9971969084

kshama ने कहा…

Baar,baar padhi yah rachana...wah!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जीवन की आपाधापी ... समाज के नियम कभी कभी सवाल करने का हक भी छीन लेते हैं ... बहुत ही गहरी बातें करती रचना है ...

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना. बधाई.

M VERMA ने कहा…

जवाब तो तब मिले
जब सवाल करने
का हक हो ?
और फिर कही सवाल का जवाब सवाल में ही न हो
बहुत सुन्दर रचना

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

जबाब तो तब मिले
जब सवाल करने का
हक़ हो !
बहुत खूब वंदनाजी

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

जबाब तो तब मिले
जब सवाल करने का
हक़ हो !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है ! अंतर्मन में दबी आवाज़ अगर दबी के अबी रह जाये तो वीभत्स चित्कार बन जाती है ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मगर उन्हें
वहीँ उन्ही
तहखानो में
दफ़न कर दिया
जाता है
जवाब तो तब मिले
जब सवाल करने
का हक हो ?

ज़माना बदल रहा है....पर अभी भी इस सच को नहीं झुठलाया जा सकता कि सवाल करने का हक ही नहीं है....मंथन योग्य रचना....बधाई

kunwarji's ने कहा…

wah!!!!

or kya kahu.....

kunwar ji,

दिलीप ने कहा…

kya chot ki waah...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर चित्रण भावों का.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

कोई चीत्कार
सुनी नहीं
मगर फिर भी
चीत्कार होती है
--
यही तो विडम्बना है!
--
बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया है
आपने इस रचना को!
--

मनोज कुमार ने कहा…

कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

Shekhar Kumawat ने कहा…

BAHUT KHUB

BADHAI IS KE LIYE AAP KO


SHEKHAR KUMAWAT

Shekhar Kumawat ने कहा…

BAHUT KHUB

BADHAI IS KE LIYE AAP KO


SHEKHAR KUMAWAT

rashmi ravija ने कहा…

जवाब तो तब मिले
जब सवाल करने
का हक हो ?
बहुत खूब...लाजबाब रचना

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

sawal karne ke hakk ko talashti.........chitkar!! bahut hi gahri rachna!!

Kabhi yahan bhi aayen
jindagi ke kainvess ko dekhne
www.jindagikeerahen.blogspot.com

अजय कुमार झा ने कहा…

सवाल के भीतर से एक सवाल निकाल लाईं आप बहुत ही बढिया रचना

Parul kanani ने कहा…

bahut badhiya!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सच को आवाज देती एक असरदार रचना।
--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।

अरुणेश मिश्र ने कहा…

प्रशंसनीय ।

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ! लाजवाब!

Renu Sharma ने कहा…

sach to yahi hai.

तेजवानी गिरधर ने कहा…

bahut aaccha