धरती और आकाश का क्षितिज
दूर बहुत दूर ..........अनन्त में
कभी मिलकर भी
नही मिल पाते
धरती यूँ ही
आकाश की तरफ़
एकटक , टकटकी बांधे
ताकती रहती है
नेह को उसके
तरसती रहती है
और आकाश
जब मन चाहे तब
बरस जाता है
उसकी चुनरिया को
धानी कर जाता है
और धरती प्रेम के
अथाह सागर में
डूब जाती है
और कभी कभी
ऐसा भी होता है
धरती जो आकाश की ओर
निहारते - निहारते
अपने वजूद को भी
खोने लगती है
तब भी आकाश
अपने अहम् में चूर
धरती की प्रीत को
उसके स्नेह को
उसके धैर्य को
भुलाकर , उसे
वृक्ष के ठूंठ सा
बाँझ बना देता है
उसके रूप - सौष्ठव को
उसकी गरिमा को
उसके त्याग को
बंजर बना देता है
प्रेम के अंकुर को सुखा देता है
उसकी सहनशीलता को
तीक्ष्ण ताप से
कुम्हला देता है
इतनी उपेक्षित होकर भी
धरती आकाश से
मिलन की चाह में
अपने को मिटाती रहती है
एक क्षितिज की चाह में
ख़ुद को भुलाती रहती है
और क्षितिज कभी
नही मिलता उसे
कभी नही मिलता ..........
31 टिप्पणियां:
धरती यूँ ही
आकाश की तरफ़
एकटक , टकटकी बांधे
ताकती रहती है
समर्पण और चाहत अक्सर आहत करते रहते है. बखूबी उकेरा है उस चरम को आपने.
बहुत ही अच्छी रचना.
खूबसूरत रचना के लिये बधाई
एक औरत के जीवन की व्याख्या अच्छे शब्दों मे की है आपने ....
सहनशीलता, स्नेह, और जीवन पर्यंत प्रतीक्षा करने का गुण
उसमे विद्यमान हैं ....अपने हक़ को छीनना नहीं सीखा है अभी
तक.... इसलिए तो उसे क्षितिज कभी नही मिलता....
और धरती आकाश से
मिलन की चाह मे
अपने को मिटाती रहती है
एक क्षितिज की चाह मे
खुद को भुलाती रहती है
और क्षितिज कभी नहीं मिलता उसे
कभी नहीं मिलता
कितने सुन्दर ढंग से औरत के समर्पण की गाथा लिखी ही जिसे पढ कर इस कविता के सरिताप्रवाह मे बहती ही चली गयी-----
बधाई इस लाज्वाव रचना के लिये
बस एक ऐसी ही प्यास जीवन को दोड़ाती रहती है।
एक सुन्दर एहसास।बहुत सुन्दर रचना है।
बधाई।
dharti or akaash kasadio se sath hai pyaar hai to bhi marji akkash ki k wo barse ke na...boht khubsurat kavita..
prithwee to mahaan hai hi sath me aapkee bhawanaye behad gahari
sanketik satya se otprot rachna.
bahut sunder vandana ji. badhai.
dharti ka samarpan aur kshtij ka aham dono lajawaab hain
आपने सही लिखा है।
धरती और क्षितिज तो कभी मिल ही नही सकते।
फिर भी धरती अपनी प्यास बुझा ही लेती है।
दोनों ही जीवम देने वाले हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों ही अतृप्त हैं।
एक अच्छी रचना के लिए आपको बधाई।
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति....सुन्दर रचना ...बधाई !!
कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें !!
pyar mein yun hi log ek doosare ke liye mar mit nahi jaate hain.Isi ko to prem kahte hai.Bhut achchha likha hai aapne.
Navnit Nirav
बहुत सुन्दर
प्रकृति के समर्पण भाव को छु पाना मानव के बस की बात नहीं है
वीनस केसरी
बहुत गहरी रचना, बधाई.
"khsitij kabhi nahi milta..."
beshak dharti aur aakash kabhi mil nahi paate par duriyon ka matlab faasle nahi hota...
acchi rachna !!
सुन्दर कविता ........... DHARTI तो DHARNI है ....... DHAARAN करती है हर चीज़ को ............... DEKHTI है एक AKAASH को MILAN के लिए.............. APNAA KARM करती है............ बहुत लाजवाब लिखा है .... सुन्दर भावनाओं को SANJOYA है
अपने मन के भावों को आपने बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
hamesha k jaise gehraiyon main dube huye shabd...
aur inshabdon ki ghraai koi nahi jaan sakta.....
wo ehesaas bhi sirf aapko hi hai....
ham to bas us dard ko samajh sakte hain jo aapne shabdon ke roop main unhe naya rang diya hai.....
bahut sundar rachana hai
... bahut hi prabhaavashaalee rachanaa !!!!!
वंदना जी !बहुत सुन्दर प्रतीक के माध्यम से अभिव्यक्त किया है अपने आप को ! वेदना की एक गहरी टीस उभरकर आती है आपकी रचनाओं में और यही आपकी विशेषता बन जाती है ! हृदयस्पर्शी रचना है !
kya likhun is kavita aur aapke baare mein...
thanks "blogger" ko dena chahunga jiske kaaran mujhe aaplogon ko v padhne ka mauka mila... warna mujhe to lagta tha dr. harivansh narayan bachhan aur Dinkar ji ke baad sirf main hi achha likhta hun ;)... bad joke...
sach kahun to aapke kalam mein shabdo ko baadhne ka jadu hai... aur aap mein us kalam ko thamne ka.. wish u all the best... keep writing...
धरती आकाश से
मिलन की चाह में
अपने को मिटाती रहती है
एक क्षितिज की चाह में
ख़ुद को भुलाती रहती है
और क्षितिज कभी
नही मिलता उसे
कभी नही मिलता ..........
bahut achchhi lagi
सुन्दर अभिव्यक्ति,
वैसे भी जो दिखता है वह सच तो नहीं, ये आकाश और धरती हमेशा ही हमें सन्देश देते रहतें हैं.
चन्द्र मोहन गुप्त
vandana
kshitiz ki sahi paribhasha aur abhivyakti hai aapki is kavita me ....
badhai sweekar karen..
vijay
वन्दना जी प्रकृति की माध्यम से जिन्दगी की सच्चाई को बयान करती सुन्दर एवं सार्थक रचना !!!! धन्यवाद
प्रदीप मानोरिया
09425132060
धरती और आकाश चाहे न मिलते हो पर एक दुसरे को अनिमेष तकते रहते है न एक पल ज्यादा न कम शायद येही प्यार है
waaqai mein.........bahut shaandaar kavita hai........ yeh aisi kavita hai jo sochne ko majboor kar deti hai.........
waaqai mein.........bahut shaandaar kavita hai........ yeh aisi kavita hai jo sochne ko majboor kar deti hai.........
sundar
बहुत ही अच्छी रचना.....बहुत बहुत बधाई....
भावों को खूबसूरती से व्यक्त किया है..
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