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रविवार, 18 मई 2008

मासूम dil

dil kitna मासूम होता है ,जो भी इबारत पढता है ,likh लेता है,
मासूम को पता ही नही होता ,क्या likhna चाहिए और क्या नही ,
jise अपना बना लेता है उसका ही हो जाता है ,
kisi को भी पराया नही मानता,
dil kitna मासूम होता है,
हर dard को अपना बना लेता है ,
हर गम का राज सीने में छुपा लेता है ,
उफ़ भी नही करता ,खामोश सब सहे जाता है
सच dil kitna मासूम होता है,

3 टिप्‍पणियां:

vijaymaudgill ने कहा…

सच में दिल मासूम होता है। जो मन में कैद जाने कितने ही पंछियों को उड़ा देता है। और जाने कितने ही पंछियों को अपने पिंजरे में कैद कर लेता है उन्हें कभी आज़ाद नहीं करता।
अच्छी लगती आपकी कविता

तीसरा कदम ने कहा…

दिल की मासूमियत खेर अच्छी बयाँ की.
बधाई.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

दिल तो है मासूम बहुत, पर दिलवाला खामोश नही है।
दिल पर कौन फिदा होता है? इसका भी कुछ तो नही है।