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रविवार, 18 मई 2008

मेरे पल

हर पल कुछ ख्वाब सजाते हैं हम और फिर उन्हें टूटते हुए देखते हैं ,
क्या ज़िंदगी बस ख्वाब सजाने और टूटने तक ही सिमट कर रह गई है
क्या हम कुछ और नही कर सकते या सोच सकते ,
क्या हमारे हाथ में कुछ भी नही है अब
कब तक हम अपने अरमानों को यूं ही दफ़न करते रहेंगे
कब तक यूं ही हर इम्तिहान में असफल होते रहेंगे हम
क्या ज़िंदगी में उससे आगे कुछ भी नही है
क्या हर पल हमसे कुछ न कुछ छीनता ही रहेगा
क्या कभी हम पलों को अपने दमन में बाँध न सकेंगे
क्या हर पल हम बस बेबस हुए दूर जाते हुए पल को देखते जायेंगे
और कुछ कर न पाएंगे
कोई टू बताये कैसे इन पलों को संजोयुं

5 टिप्‍पणियां:

vijaymaudgill ने कहा…

वंदना जी पलों को संजोया नहीं जाता। उनका तो आनंद लिया जाता है। अब ये आप पर डिपैंड करता हैं आप उनको किस नज़र से देखती हैं। कोई पल बुरा नहीं होता। बस आपका नज़रिया बदला होता है। आगे भी जाने तू, पीछे भी जाने न तू जो भी है बस यही इक पल है

बेनामी ने कहा…

aapki har rachana dard bhari hai, lagta hai bahut hi dard bhari hai aapki jindagi.apne dard ko yun hi hamse bantte rahiye,shayad kuch kam ho jaye.

Bahadur Patel ने कहा…

bahut sundar.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

स्वप्न इतने मत सजाओ, टूट जायेंगे।
हाथ इतने मत मिल़ाओ, छूट जायेंगे।

Dhanbir ने कहा…

vandana ji kay kahu aap ki har line ka bara ma aap jo v likha hai bhut acha likha ha or sayad aap ki life v kavi panfull hogi ,