ये हाशिये का नवगीत है
जो अक्सर
बिना गाये ही गुनगुनाया जाता है
एक लम्बी फेहरिस्त सा
रात में जुगनू सा
जो है सिर्फ बंद मुट्ठियों की कवायद भर
तो क्या हुआ जो
सिर्फ एक दिन ही बघार लगाया जाता है
और छौंक से तिलमिला उठती हैं उनकी पुश्तें
तुम्हारे एक दिन के चोंचले पर भारी है उनके पसीने का अट्टहास
सन्दर्भ --- मजदूर दिवस
7 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " मजदूर दिवस, बाल श्रम, आप और हम " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
तुम्हारे एक दिन के चोंचले पर भारी है उनके पसीने का अट्टहास..
सही कहा।
तुम्हारे एक दिन के चोंचले पर भारी है उनके पसीने का अट्टहास.....सटीक
दिखावा ज्यादा देर नहीं टिकता
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-05-2016) को "लगन और मेहनत = सफलता" (चर्चा अंक-2331) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्रमिक दिवस की
शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सटीक और सार्थक
बहुत सुन्दर
I like the way of your writing, you just write with your heart;
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