इश्क की जुबाँ से काला धागा उतरता ही नहीं
जाने किस मौलवी ने बाँधा है
कौन सा मन्त्र फूँका है
जितना खोलने की कोशिश करूँ
उतना ही मजबूत होता है
सुना है
काले धागे में बंधे ताबीज़ों की तासीर
परेशान आत्माओं की मुक्ति का
या फिर नज़र न लगने का सन्देश होती हैं
और
इश्क की नज़रें भला कब उतरी हैं
इश्क में तो जिए या मरें
आत्माएं न कभी मुक्त हुयी हैं
शायद इसीलिए
इश्क की जुबाँ पर काले धागों की नालिश हुयी है
2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर वाह !
अतिसुंदर रचना...।
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