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मंगलवार, 29 नवंबर 2011

स्वीकार सको तो स्वीकार लेना





सुना है
आज के दिन 
वरण किया था
सीता ने राम का 
जयमाल पहनाकर
और राम ने तो 
धनुष के तोड़ने के साथ ही
सीता संग जोड़ ली थी
अलख प्रीत की डोरी
कैसा सुन्दर होगा वो दृश्य
जहाँ ब्रह्माण्ड नायक ने
आदिसृष्टि जगत जननी के साथ
भांवरे भरी होंगी
उस अलौकिक अद्भुत
अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव
क्या शब्दों की थाती कभी बन सकता है
आनंद तो अनुभवजन्य प्रीत है
फिर भुवन सिन्धु का भुवन सुंदरी संग
मिलन की दृश्यावली 
जिसे शेष ना शारदा गा पाते हैं
वेद भी ना जिनका पार पाते हैं
तुलसी की वाणी भी मौन हो जाती है 
चित्रलिखि सी गति हो जाती है 
उसका पार मैं कैसे पाऊँ
कैसे उस क्षण का बखान करूँ
बस उस आनंद सिन्धु में डूबने को जी चाहता है
कोटि कोटि नमन करती हूँ
 जीव हूँ ना ...........
बस नमन तक ही मेरी शक्ति है
यही मेरी भक्ति है ..........स्वीकार सको तो स्वीकार लेना 

31 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Hairan kar detee ho....kahan se ye sab lekhan soojh jata hai tumhen?

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति|

Pallavi saxena ने कहा…

जीव हूँ ना ........... बस नमन तक ही मेरी शक्ति है यही मेरी भक्ति है ..........स्वीकार सको तो स्वीकार लेना वाह !! बहुत खूब लिखा है आपने वंदना जी... शुभकामनायें

shikha varshney ने कहा…

कैसे न स्वीकारेंगे ? मन से मन की थाह है.
सुन्दर रचना.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

निश्चय ही सबके आनन्द का क्षण था वह।

रविकर ने कहा…

प्रभावी कविता ||

सुन्दर प्रस्तुति ||

Amrita Tanmay ने कहा…

भक्ति अवश्य ही स्वीकार की जाती है . अति सुन्दर रचना.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

हर बार कि तरह भाव में बहती और बहाती कविता...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वंदना जी,..
बहुत खूबशूरत रचना,
हमने तो स्वीकार किया....
सुंदर पोस्ट,,

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

sach me avandneey hai aisa drishy to.

sunder prastuti.

विभूति" ने कहा…

भावो का सुन्दर चित्रण...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर पावन भाव लिए अभिव्यक्ति..... ज़रूर स्वीकार हो यही प्रार्थना है....

सागर ने कहा…

bhaut hi khubasurat bhaavo se rachi sundar rachna...

मनोज कुमार ने कहा…

सामयिक पोस्ट।
जय श्री राम!

Archana writes ने कहा…

बेहतरीन कविता...

गुमनाम ने कहा…

वंदना जी,

आपके लिए प्रस्तुत है ये सच्ची कहानी-

http://gumnamsahitya.blogspot.com/

वाणी गीत ने कहा…

गूंगे का गुड जैसी भावना को कोई अभिव्यक्त करे भी कैसे ...
भावना तो स्वीकार करेंगे ही जरुर !

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति...

सदा ने कहा…

जीव हूँ ना ........... बस नमन तक ही मेरी शक्ति है यही मेरी भक्ति है .......नि:शब्‍द कर दिया आपने ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Maheshwari kaneri ने कहा…

सुन्दर पावन भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति...

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

उस अलौकिक दृश्य की कल्पना मात्र से जो रोमांच और आनंदानुभूति आपकी कविता पढ़ने से होता है वह भी कुछ कम नहीं !
आभार !

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - ब्लॉग जगत से कोहरा हटा और दिखा - ब्लॉग बुलेटिन

***Punam*** ने कहा…

सुंदर पावन अभिव्यक्ति....स्वीकार हो !!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बड़ी खुबसूरत रचना है आदरणीय वंदना जी...
श्री राम कथा सचमुच अद्भुत है...

सादर बधाई....

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

bahut khoobsurat rachna....aabhar

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

भक्ति में प्रेमपूर्ण समर्पण....अद्वितीय

रंजना ने कहा…

वाह...क्या पावन भावोद्गार...

मुग्ध होकर रह गया मन...

सत्य है इससे अधिक और कुछ कहा भी तो नहीं जा सकता...जहाँ पहुँच वाणी अवरुद्ध हो जाती है,शब्द स्तब्ध हो जाते हैं,वहां कोई कैसे उदगार व्यक्त करे...नमन से अधिक कुछ और क्या कहे...

PK SHARMA ने कहा…

बहुत अच्छी रचना है आपकी , हमारे ब्लॉग पर भी दर्शन दे श्रीमान
हमारी कुटिया पर तो कोई आता ही नहीं है, आईये ना ............

vijay kumar sappatti ने कहा…

वंदना जी
आपके भक्ति भरी कविताएं भी उतनी अच्छी होती है , जितनी की कोई और कविता ... आपने इस कविता को लिखकर बहुत तृप्ति दी है रामभक्तों को ..

बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच्चे दिल की पुकार तो हमेशा ही सुनी जाती है ... इस शक्ति पे भरोसा रकना होगा ...

avanti singh ने कहा…

waah bahut hi sundar rachna...nishabd kiya aap ne.....