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शनिवार, 26 नवंबर 2011

लो फिर आ गयी छब्बीस बटा ग्यारह..........अब तो कुछ शर्म कर लो

लो फिर आ गयी
छब्बीस बटा ग्यारह
एक दिन का शोर शराबा
फिर वो ही मंजर पुराना
सब  कुछ भुला देना
चादर तान के सो जाना
क्या फर्क पड़ता है
मासूमों की जान गयी
क्या फर्क पड़ता है
जिनके घर ना 
अब तक जले चूल्हे
क्या फर्क पड़ता है
जिसकी बेटी रही अनब्याही
क्या फर्क पड़ता है
दूधमुंहे से छिन गयी ममता प्यारी
क्या फर्क पड़ता है
माँ की आँख का ना सूखा पानी
क्या फर्क पड़ता है
जिसके घर ना मनी दिवाली
क्या फर्क पड़ता है
सूनी माँग में ना भरी लाली
क्या फर्क पड़ता है
अपाहिज के जीवन को मोहताज हुआ
क्या फर्क पड़ता है
जब स्कूल जाने की उम्र में
थाम ली हो घर की चाबी
दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में
बेच दी हों किताबें सारी
पेट की आग बुझाने को
ज़िन्दगी से लड़ जाने को
बिटिया ने हो घर की
बागडोर संभाली
किसी को फर्क ना 
तब पड़ना था
ना अब पड़ना है
ये तो सिर्फ तारीख की 
भेंट चढ़ता कड़वा सच है
जिसे खून का घूँट 
समझ कर पीना है
जहाँ अँधियारा 
उम्र भर को ठहर गया है
जहाँ ना उस दिन से 
कोई भोर हुई
किसी को ना कोई फर्क पड़ना है 
दुनिया के लिए तो 
सिर्फ एक तारीख है
एक दिन की कवायद है
राजनेताओं के लिए 
श्रद्धांजलि दे कर्त्तव्य की
इतिश्री कर ली जाती है
उस बाप की सूखी आँखों में ठहरा
खामोश मंजर आज भी ज़िन्दा है
जब बेटे को कंधे पर उठाया था
उसका कन्धा तो उस दिन
और भी झुक आया था 
बदल जाएगी तारीख 
बदल जायेंगे मंजर
पर बूढी आँखों में ठहर गया है पतझड़
अब तो कुछ शर्म कर लो
ओ नेताओं ! मत उलझाओ 
कानूनी ताने बानों में
मत फेंको कानूनी दांव पेंचों को
दे दो कसाब को अब तो फाँसी
शायद आ जाये 
उस बूढ़े के होठों पर भी हँसी
मरने से पहले मिल जाये उसे भी शांति
माँ की आँखों का सूख जाए शायद पानी
या फिर उसकी बेवा की सूनी माँग में 
सूने जीवन में , सूनी आँखों में 
आ जाए कुछ तो लाली 
मत बनाओ इसे सिर्फ
नमन करने की तारीख
अब तो कुछ शर्म कर लो 
अब तो कुछ शर्म कर लो.................

34 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

मत बनाओ इसे सिर्फ

नमन करने की तारीख ...

बिल्‍कुल सार्थक बात कही आपने ... आभार ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति, अफ़सोस कि शर्म सिर्फ इज्जतदार इंसानों को आती है, जिनका आजकल अकाल पडा है !

Amrita Tanmay ने कहा…

संवेदनशील , प्रवाहमयी रचना के लिए आभार . सही कहा है शर्म नहीं आती है किसी को .

kshama ने कहा…

Jo tan lage,so tan jaane...yahee sach hai....auron ke liye to pardukkh sheetal...

बेनामी ने कहा…

बहुत मार्मिकता से आपने पुराने ज़ख्मों को कुरेदा है |

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सार्थक लेखन ... बस तारीख याद रखते हैं ... मार्मिक प्रस्तुति

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सार्थक लेखन ... बस तारीख याद रखते हैं ... मार्मिक प्रस्तुति

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सही समय पर सटीक कविता .

रविकर ने कहा…

26/11 means

2+ (5/11)

2 sahi PM &HM

baaki ----

बहुत खूब ||
सुन्दर रचनाओं में से एक ||

आभार ||

Ritesh Sinha ने कहा…

Bahut saaf aur sarthak baat kahi aapne,.... kaash ye baat hamari Goverment ko bhi sunai de... jo ki andhi, bahri, gungi bani bethi hai... Bahut khub Mam, keep it up..

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक और मार्मिक अभिव्यक्ति..

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

इस दर्द भरी हकीकत पर उनके रिसते दरद की पीड़ा दिखाई ..जो लोग इस हादसे के शिकार हुवे है उनके और उनके परिवार के प्रति ...बेहद शर्म की बात है कि ऐसे आतंकी कारवाही कब हो जाए .. हमारी रक्षा प्रणाली में कब सेंध लग जाए कुछ पता नहीं नहीं

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक साल और बीतने पर थोड़ा और दुखी हो जायें।

अमर भारती शास्त्री ने कहा…

PUBLIC MEMORY BAHUT KAMJOR HOTI HAI.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

|| हम अंधेरों से उजाओं की उमीद ले कर जिये
सूर्य भी कारवां ए शब् के साथ हो लिया... ||


सादर...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
--
अरे!
हमारी श्रीमती जी तो पहले से ही यहाँ मौजूद है। आजकल उन्हें भी ब्लॉगिंग का बुखार चढ़ा हुआ है!

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

sirf shrdhanjali hi baki bachi hei...

Sunil Kumar ने कहा…

नेताओं को नाटक करने का एक और मौका :(:(

मनोज कुमार ने कहा…

सच है,, अब तो रस्म अदायगी भर ही होनी है।

Amit Chandra ने कहा…

बेशर्मों को भी कभी शर्म आती है.

सुंदर प्रस्तुति. आभार.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

संवेदनशील,सुन्दर प्रस्तुति!

Roshi ने कहा…

मार्मिक प्रस्तुति शहीदों को शत शत नमन

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

सुन्दर रचना वंदना जी ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

आई और चली भी गई, गोष्ठियाँ हुईं, बयान छपे, फोटो खिंचे, राजनीति हुई - होने को और भी बहुत कुछ हुआ - किन्तु .............................................................

Maheshwari kaneri ने कहा…

सार्थक लेखन ...मार्मिक प्रस्तुति,,

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

bahut hi marmik or satik rachana hai...

कुमार राधारमण ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कुमार राधारमण ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कुमार राधारमण ने कहा…

न सीखना हमारी आदत है
भुगतना हमारी नियती!

Udan Tashtari ने कहा…

शर्म मगर उनको आती नहीं....

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

कभी लगता है कि ऐसे लोकतंत्र से तो राजशाही ही ठीक थी। जब युद्ध होते थे तो उनके परिवार पर ही आपत्ति आती थी इसलिए वे राज्‍य की सुरक्षा की पुख्‍ता व्‍यवस्‍था करते थे लेकिन आज कैसी भी विपत्ति आए लेकिन राजा अर्थात राजनेता और नौकरशाह हमेशा सुरक्षित रहते हैं। इसलिए हम देश की आन्‍तरिक सुरक्षा के प्रति एकदम से उदास हैं। क्‍योंकि मरेगी जनता, उनका तो कुछ बिगडेगा नहीं।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

नमन करने की तारीख...

वाह, सच का भावपूर्ण उद्गार ।

ZEAL ने कहा…

Unfortunately people remember the dates only.. they do not take lessons, nor pledges...