घर से ऑफिस
के लिए जब
निकलता है आदमी
जाने कितनी चीजें
भूलता है आदमी
घर से ऑफिस
तक के सफ़र में
दिनचर्या बना
लेता है आदमी
कौन से
जरूरी काम
पहले करने हैं
कौन सी फाइल
पहले निपटानी है
किसका लोन
पास करना है
किसका काम
रोक कर रखना है
सारे मानक तय
कर लेता है
साथ ही आज
वापसी में
कौन से सपने
लेकर जाने हैं
बीवी बच्चों के
कामों की
फेहरिस्त भी
बना लेता है
आदमी
किसकी फीस
जमा करवानी है
किसे डॉक्टर के
लेकर जाना है
बेटी के लिए
लड़का ढूंढना है
बेटे का एड्मीशन
करवाना है
किसे रिश्वत
देकर काम
निकलवाना है
हर काम के
मापदंड तय
कर लेता है
आदमी
मगर इसी बीच
कुछ पल वो
भविष्य के भी
संजो लेता है
कुछ पल अपनी
कल्पनाओं की
उडान को भी
देता है आदमी
जब देखता है
किसी गाडी में
सवार किसी
परिवार के
चेहरे पर
खिलती
मुस्कान को
या किसी
आलिशान
मकान को
या शौपिंग माल
या मूवी देखने
जाते किसी
परिवार को
तब वो भी
उसी जीवन की
आस संजो
लेता है आदमी
खुशहाली का
एक बीज
अपने अंतस में
रोप लेता है
आदमी
दुनिया की हर
ख़ुशी की चाह में
कुछ सपने
सींच लेता है
आदमी
बेशक पूरे
हों ना हों
मगर फिर भी
वो सुबह कभी
तो आएगी
इस चाह में
एक जीवन
जी लेता है
आदमी
घर परिवार को
ख़ुशी देने की
चाह में
ख्वाबों की
उड़ान भर
लेता है आदमी
उम्मीद की
इस किरण पर
आस का दीपक
जला लेता है
आदमी
घर से ऑफिस
के बीच
ज़िन्दगी की
जद्दोजहद से
कुछ पल
स्वयं के लिए
चुरा लेता है
आदमी
30 टिप्पणियां:
वन्दना जी विचार अच्छा है मगर ये कविता गध्यनुमा लगती है.जिसे तुकडे करके लंबा किया गया है. बोलने में कुछ तो पद्यनुमा लगना चाहिए.
घर परिवार को
ख़ुशी देने की
चाह में
ख्वाबों की
उड़ान भर
लेता है आदमी
इन पक्तियों मे आदमी की सारा जीवन सिमटा हुआ है,
हर आदमी घर परिवार के लिए सब कुछ करता है यहाँ तक कि अपने ख्वाब, आरजू आदि सब कि बली देकर भी, परिवार के इच्छाओ की पूर्ति का ख्वाब सजोता है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
यह तो नौकरी शुदा है आदमी !
दिनचर्या को बताते हुए कुछ सपनों को बुनना ...अच्छी तरह निभाया है इस रचना में /
अनोखी बात कह दी वाह
ताज़ा-पोस्ट ब्लाग4वार्ता
एक नज़र इधर भी मिसफ़िट:सीधी बात
बच्चन जी कृति मधुबाला पर संक्षिप्त चर्चा
घर से ऑफिस
के बीच
ज़िन्दगी की
जद्दोजहद से
कुछ पल
स्वयं के लिए
चुरा लेता है
आदमी
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आपने तो इस रचना में जिन्दगी का पूरा लेखा-जोखा ही सामने रख दिया!
सचमुच ऐसा ही तो है आदमी!
apnimaati.com के एडिटर साहब से पूर्णतया सहमत हूँ. एक पद्य को बार बार बिना मतलब का लाइन बदलकर गद्य बनाने की कोशिश सी लगती है. विचार बहुत सही हैं. एक आम मध्यवर्गीय आदमी के जद्दोजहद के बारे में सही कहा है आपने, पर इसे कविता का रूप देने में पूरी तरह असफल रही हैं आप..........इसे पद्य में लिख दिया होता तो शायद पसंद आ जाती ये रचना! धन्यवाद!
ek halki si umeed per khwaabon ki udaan ... itna hi to jeeta hai aadmi
5.5/10
कहानी की तरह पढ़ी जाने वाली सुन्दर रचना.
इतने अच्छे भाव हैं ..जिस तरह भी लिखिए अच्छा लगेगा ... कविता की ही जिद क्यूँ ?
सच है,
सपने और आशाएं ही हो व्यक्ति को उर्जा देती हैं...
.
अद्भुत अभिव्यक्ति । इस सशक्त रचना के लिए बधाई एवं आभार ।
.
बेचारा आदमी!!! तब भी पिसता हे यह आदमी.
बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना. धन्यवाद
ज़िंदगी की जद्दोजहद से
कुछ पल
स्वयं के लिए
चुरा लेता है
आदमी
एकदम नए भावों से युक्त कविता...अच्छी लगी।
मुझे तो हकीकत जैसा ही लग रहा है.
रामराम
बड़े काम की चोरी बताई है आपने ! यही सत्य है जीवन का !
घर से आदमी आफिस जाता है , मगर टिफिन के साथ जिम्मेदारियों को , अधूरे कामों की लिस्ट को , कुछ सपनों उम्मीदों को भी ले कर निकला है , बहुत अच्छा लगा पढ कर
जिंदगी को कितनी सहजता से अभिव्यक्त कर रही हैं आप.. आदमी वास्तव में कई भागों में बटा होता है और कई भूमिका में होता है.. सुंदर कविता...
इतनी गंभीर रचना पढवाई कि मन उद्विग्न हो उठा.. एक अनुभव है.. अलग सा.. बहुत सुन्दर!
एक दम अपनी दिनचर्या पाता हूं इसमें।
बहुत बढिया .. हकीकत बयान की है आपने इस रचना में !!
आम आदमी का आम दिन . सपनों की फेहरिस्त, जिम्मेवारियों का बोझ और इन सब के बीच कुछ सही गलत फैसले - यही तो है जिंदगी . अच्छी माला पिरो दी आपने इन सब की .
chand palon ka awkaash khud ki khatir churata rahe aadmi ...
jindagi ka safar aasani se tay ho jayega tamaam muskilon ke bawjood!
sundar rachna!
घर परिवार को
ख़ुशी देने की
चाह में
ख्वाबों की
उड़ान भर
लेता है आदमी ...
रोज़ के सफ़र क़ि सुनहरी दास्ताँ लिख दी है ... ख्वाब बुनना बहुत जरूरी है इस जीवन में ...
घर से ऑफिस के बीच की यात्रा बड़ी रोचक होती है, कविता द्वारा सुन्दर निरूपण।
वाह वंदनाजी!...ओफिस जैसी उबाउ जगह को आपने एक सुंदर और रोचक स्थान बना दिया!...उत्तम कृति, धन्यवाद!
badhiya hai..ek aam adami ki rojmarra kahani..badhiya vyankt kiya aapne..badhai
सपनों के बिना तो जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती. सपने हमारे बेरंग उदास जीवन में खुशियों के रंग बिखेर देते हैं और जीवन को जीने लायक बना देते हैं. सहज साधारण जीवन में भी सब कुछ के बीच उन्हें किसी तरह बचाए रखने कोशिश उस जीवन को भी असाधारण बना देती है. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
एक नौकरीपेशा पुरुष की जद्दोजहद को भरपूर शब्द दिए हैं. हकीकत से रु-ब-रु कराती रचना.
बेहतरीन भावों से सजी रचना ..बहुत सुन्दर.
bahut achha likha hai vandana ji ... deri ke liye maafi chahungi ...
aapne sach kaha aadmi ko apne liye hi wakt nikalna mushkil ho jaat hai ... agar do pal bhi naseeb ho jaein to ganeemat hai ... aabhaar
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