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शनिवार, 19 जून 2010

पिता का योगदान

              एक बच्चे के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास में एक पिता का योगदान माँ से किसी भी तरह कम नहीं होता.माँ तो वात्सल्य की मूर्ति होती है जहाँ अपने बच्चे के लिए प्रेम ही प्रेम होता है  मगर पिता उसकी भूमिका यदि माँ से बढ़कर नहीं तो माँ से कम भी नहीं होती. ज़िन्दगी की कठिन से कठिन परिस्थिति में भी पिता अपना धैर्य नहीं खोता और उसकी यही शक्ति बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है. बच्चों के जीवन के छोटे -बड़े उतार -चढ़ावों में पिता चट्टान की तरह खड़ा हो जाता है और अपने बच्चों पर आँच भी नहीं आने देता. बेशक ऊपर से कितना भी कठोर क्यूँ ना दिखे पिता का व्यक्तित्व मगर ह्रदय में उसके जो प्यार होता है अपने बच्चों के लिए वो शायद दूसरा समझ ही नहीं सकता. बेशक ज्यादा लाड - प्यार ना जताए मगर वो भी अपने बच्चों की छोटी से छोटी ख़ुशी के लिए उसी प्रकार जी -जान लड़ा देता है जैसे माँ.बस वो अपने स्नेह का उस प्रकार प्रदर्शन नहीं कर पाता. समर्पण ,प्रेम और त्याग में पिता कहीं भी पीछे नहीं होता बस वो जता नहीं पता. माँ तो रो भी पड़ेगी मुश्किल हालात में मगर पिता वो हमेशा अन्दर ही अन्दर सिर्फ अपने आप से जूझता रहेगा मगर कहेगा नहीं वरना ममता और भावुकता में वो किसी से पीछे नहीं रहता.ना पिता में जज्बात कम होते हैं ना ही अहसास बस अपने प्यार को वो अपनी कमजोरी नहीं बनने देता और यही उसकी ताकत होती है ज़िन्दगी से लड़ने की और आगे बढ़ने की.
                 ज़िन्दगी का व्यावहारिक ज्ञान जिस प्रकार पिता बच्चों को दे सकता है शायद उतनी अच्छी तरह और कोई नहीं दे सकता . बच्चे के अन्दर से भय का दानव वो ही निकालता है . माँ तो फिर भी अपनी ममता के कारण बच्चे को कहीं अकेले जाने के लिए  मना भी कर दे मगर पिता वो बड़ी बेफिक्री से बच्चे को प्रोत्साहित करता है जिससे बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ता है. एक पिता अपने बच्चों को सुरक्षा की भावना प्रदान करता है. जैसे यदि माँ होती तो चाहे बेटा हो या बेटी उन्हें कोई भी वाहन चलाने पर चिंतित हो जाएगी . हाय !मेरा बच्चा ठीक- ठाक घर आ जाये या उसे चलाने  से ही मना कर दे क्यूंकि हर माँ जीजाबाई जैसे ह्रदय की नहीं होती मगर माँ की जगह पिता इस कार्य को चुटकियों में और खेल -खेल में पूरा कर देता है और माँ भी उस वक्त बेकिफ्र हो जाती है जब बच्चा पिता के साये में ज़िन्दगी जीना सीख रहा होता है.
                जब बच्चा मुश्किल घडी में अपने पिता को धैर्य और आत्मविश्वास के साथ हालत का मुकाबला करते देखता है तो ये भावना भी उसके दिल में घर कर जाती है और बच्चा भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलने के लिए प्रेरित हो जाता है . किसी भी असफलता की घडी में उसे अपने पिता की सहनशक्ति ही आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करती है और फिर बच्चा हर कठिन से कठिन परिस्थिति का हँसते -हँसते मुकाबला करने में सक्षम हो जाता है.
          एक बच्चे के समुचित विकास में लिए माँ के साए के साथ- साथ पिता का योगदान भी उतना ही आवश्यक है तभी बच्चे का सर्वांगीण  विकास संभव है.

23 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

SARGARBHIT AALEKH.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

maa aur pita dono hi sarvangin vikaas ke purak hain

अजय कुमार झा ने कहा…

आज के दिन इससे अच्छी पोस्ट और कौन सी हो सकती थी पढने के लिए । बहुत ही सार्थक बात कही आपने । सच में पिता का अपना एक विशिष्ट महत्व और स्थान है जीवन में ।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 20.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/

shikha varshney ने कहा…

Fathers day par sundar post..

शिवम् मिश्रा ने कहा…

एक बहुत बढ़िया आलेख ! आभार ...........वैसे किसी ने सच ही कहा है, "बाप, बाप ही होता है|"

Dev ने कहा…

pita diwas par aapne bahut hi behtreen lekh prastut kiya hai .....mata-pita ka yogdaan bacche ke vikas mein braabar hota hai......bahut behtreen lekh ......bahut bahut shukriya.

Renu Sharma ने कहा…

baat to sahi hai
achchha likha hai

Unknown ने कहा…

जिन्दा लोगों की तलाश!
मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666

E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपका कहना बिल्कुल वाजिब है .. बच्चे के पूर्ण विकास में दोनो महत्वपूर्ण हैं ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक और सारगर्भित लेख....सार्थक

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आप की सोच से मैं शतप्रतिशत सहमत हूँ...जीवन में माँ बाप के योगदान को भुलाया ही नहीं जा सकता...मातृ दिवस-पितृ दिवस तो पश्चिम की दें है हमें जिसमें उनका बाज़ार वाद साफ़ झलकता है हम भारतियों के दिल में तो माता-पिता सदैव ही बसते हैं...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

अपके विचारों में मेरी बराबर सहमति है ।
पिता की भूमिका यदि माँ से बढ़कर नहीं तो माँ से कम भी नहीं होती.

…और पिता के साथ कोमल रिश्ते की एक अन्भूति बांटने के लिए शस्वरंपर आमंत्रण है ।

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

rashmi ravija ने कहा…

बच्चों के जीवन में पिता के रोल को बहुत ही अच्छे तरीके से बताया है...पिता की उपस्थिति भी उतनी ही जरूरी है...जितनी माँ की..उनके मार्गदर्शन के बिना बच्चों का जीवन अधूरा है..

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aapki achchhi aur sachchi soch ko pratibimbit karta aalekh!!

badhai.......:)

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

I agree with you. A child needs both of its parents. Very nice post.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सच कहा आपने।
---------
इंसानों से बेहतर चिम्पांजी?
क्या आप इन्हें पहचानते हैं?

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत बडिया सार्गर्भित आलेख। बधाई

ANKUR JAIN ने कहा…

khubsurat lekh...aapne bilkul sahi kaha tha...hamare vichar vakai mel khate hain...
sadhuvad!!!!

ANKUR JAIN ने कहा…

khubsoorat lekh...
aapne sahi kaha tha ki hamare vichar kafi mel khate hain...
shubhakamnayen

S R Bharti ने कहा…

bahut khoob Vandana ji,
Aapne saarthak bhavon ko vyakt kiya hai.
Hardik badhai.

vipinkizindagi ने कहा…

सही व्याख्या के साथ.....बहत अच्छी पोस्ट.

shiva jat ने कहा…

वंदना जी आपने बहुत सुंदर लिखा है एक बच्चे के जीवन में मां बाप का बहुत बङा योगदान होता है पिता जी जान से परवरिश करता है लेकिन अगर आप बुरा नही मानो तो एक बात कहुं कि जो बात आपने लिखी है वो 40 साल पहले ठीक थी तब बच्चे कितने संस्कारवान होते थे लेकिन आज की हालात देखो बच्चे कैसे हो रहे है क्या ये सच्चाई नही है। मैं अच्छाई के साथ साथ समाज में जिस बात से अलगाव अराजकता दुरियां बनती हैं उन पर ज्यादा चिंतन करता हुं। आप बहुत अच्छा लिखती हो। गलती हो तो माफ करना और प्लीज मेरा भी ब्लोग पढकर देखना
http://jatshiva.blogspot.com/