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बुधवार, 4 अगस्त 2021

कांस्य प्रतिमा

 शब्दविहीन मैं किस भाषा में बोलूँ अर्थ संप्रेषित हो जाएँ

रसहीन मैं
किस शर्करा में घुलूं
स्वाद जुबाँ पर रुक जाए

रंगहीन मैं
किस रंग में ढलूँ
केवल एक रंग ही बच जाए

गाढे वक्त के एकालाप से लिखी कांस्य प्रतिमा हूँ मैं

3 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

किस विचार में गुम हैं ?
यूँ शब्दों का सम्प्रेषण बेहतरीन है ।

Monika Dongre ने कहा…

एक अनकहा शब्दों का सफ़र, बहुत ही खूबसूरत हैं।