गुस्से के धुएं में जल रही है चिता
अपनी ही आजकल
पंगु जो हो गयी है व्यवस्था
और लाचार हो गयी है जनता
तो क्या हुआ जो न मिले न्याय
दस वर्षीय गर्भवती को
उनके घर नहीं होते ऐसे हादसे
'इतना बड़ा देश है, आखिर किस किस की संभाल करें'
कारण से हो जाओ संतुष्ट
कि तालिबानी देश के वासी हो अब तुम
जहाँ इतिहास को खुरचा जा रहा हो
बदली जा रही हों इबारतें
वहाँ छोटे मोटे हादसों से परेशान करने की जुर्रत ?
मरे हुए देश के मरे हुए लोगों
न्याय वो अबला है
जिसकी मांग में सिन्दूर भर
सुहागिन करने के रिवाज़ बदले जा चुके हैं
आओ शोकगान में सम्मिलित होओ
2 टिप्पणियां:
गुस्से के धुयें मैं जल रही है चिता
पंगु जो गयी है ,व्यवस्था ,आत्मा की पुकार है
अब नही सहा जाता अन्याय पर अन्याय ,स्वयम ही काली बनकर दुष्टों का विनाश करूंगी ।
बहुत ही अच्छी रचना
waah ati sundar hridaysparshi kavita
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