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रविवार, 15 फ़रवरी 2015

तुम्हें और क्या दूँ मैं दिल के सिवाय


अब तुम्हें और क्या दूँ मैं दिल के सिवाय ........२७ साल का सफ़र में :)



प्रेम कभी प्रौढ नहीं होता ……
****************************

1.
जो वस्तु में , दृष्टि में , सृष्टि में उल्लास भर दे , 
खिलखिलाहट से सराबोर कर दे ……
जहाँ निगाह डालो उसी का रूप दमके , 
उसी के ख्याल धमके , उसी की पायल छनके 
फिर ना कोई दूजा रूप निगाह में अटके  
यही तो प्रेम का चिरजीवी स्वरूप है 
जो नित नवीन रूप धारण कर 
नवयौवना सा खिलखिलाता रहता है 
जितनी प्रेम की सीढी चढो उतना ही 
उसके यौवन पर निखार आता जाता है ………
प्रेम कभी प्रौढ नही होता ……जानाँ !!! 

2.
और तुम मेरी आँख में ठहरा वो बादल हो 
जो बरसे तो मैं भीगूँ , जो रुके तो मैं थमूँ ,
जो लहलहाये तो मैं थरथराऊँ , 
जो मेरी रूह को चूमे तो मैं पिघल जाऊँ , 
रसधारा सी बह जाऊँ , 
नूर की बूँद बन जाऊँ और तेरी पलकों में ही समा जाऊँ 
फिर ना अधरामृत के पान की लालसा रहे , 
फिर ना मिलन बिछोह के पेंच रहें , 
फिर ना दिन रात का होश रहे 
सूक्ष्म तरंग सी मैं बह जाऊँ
तुझमें समा नवजीवन पाऊँ 
फिर नवयौवना सी खिल खिल जाऊँ 
क्योंकि प्रेम कभी प्रौढ नहीं होता ………जानाँ !!! 

3.
और मेरे प्रेम की धुरी भी तुम हो , 
तुम्हारे आँखों की वो गहराई है 
जो भेद जाती है मुझे अन्दर तक 
खोल देती है सारे परदे खिडकियों के 
आने देती है एक महकती प्राणवायु को अन्दर 
और कर देती है समावेश मुझमें 
साँसों की सरसता का , महकता का , मादकता का 
और मैं खुले आकाश पर विचरती एक उन्मुक्त पंछी सी 
तुम्हारे प्रेम के बाहुपाश में बँधी जब भरती हूँ उडान
हवायें झुक कर करती हैं सलाम 
मेरे पंखों को परवाज़ देती हैं , 
मेरी उडान मे सहायक होती हैं 
और मैं बन जाती हूँ तुम्हारे प्रेम का जीता जागता जीवन्त प्रमाण 
जो हमेशा तरुणी सा इठलाता है 
क्योंकि प्रेम कभी प्रौढ नहीं होता ………जानाँ !!! 

4.
ये तो सिर्फ़ तरंगों पर बहते हमारे प्रेम के स्फ़ुरण हैं जानाँ 
गर कहीं तुमने कभी छू लिया मुझको और जड दिया एक चुम्बन 
मेरे कपोलों पर , ग्रीवा पर , नासिका पर , नेत्रों पर या अधरों पर
 मैं ना मैं रह पाऊँगी 
फिर चाहे केश कितने ही पके हों , 
झुर्रियों से हाथों का श्रृंगार क्यों ना हुआ हो , 
कदमों में चाहे कितने ही दर्द के फ़फ़ोले पडे हों 
मन मयूर नृत्य करने को बाध्य कर देगा 
और फिर हो जायेगा नव सृष्टि का निर्माण 
तुम्हारे प्रेम की ताल पर मेरे पाँव की थिरकन के साथ 
उद्दात्त तरंगों पर फिर होगा एक नवयौवना शोडष वर्षीय तरुणी का आगमन 
क्योंकि प्रेम के पंखों पर कभी किसी भी वक्त की परछाइयाँ नहीं पडा करतीं , 
किसी भी मौसम का प्रभाव नहीं पडता तभी कभी झुर्रियाँ नहीं पडतीं , 
चिरयौवन होता है प्रेम का ……
फिर उम्र चाहे कोई भी क्यों ना हो , 
लम्हे चाहे कितने दुरूह क्यों ना हों 
प्रेम का होना ही प्रेम को तरुण बनाये रखता है 
शायद इसीलिये प्रेम कभी प्रौढ नहीं होता ………जानाँ !!! 

5.
और मेरे प्रेम हो तुम, जो आज तक बदली के उस तरफ़ हो 
और मैं उम्र के हर मोड पर सिर्फ़ तुम्हें ही ढूँढ रही हूँ ………
विश्वास है मिलोगे तुम मुझे किसी ना किसी मोड पर 
इसलिये मेरा प्रेम आज तक जीवन्त है , 
अपनी मोहकता के साथ तरुण है और हमेशा रहेगा 
क्योंकि जान चुकी हूँ ये गहन रहस्य ……………प्रेम कभी प्रौढ नहीं होता ………जानाँ !!! 

मेरे कविता संग्रह 'बदलती सोच के नए अर्थ ' से ये कविता 

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएँ।।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-02-2015) को "बम भोले के गूँजे नाद" (चर्चा अंक-1891) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुति

Jyoti Dehliwal ने कहा…

प्रेम कभी प्रौढ नहीं होता ………जानाँ !!

बहुत सुन्दर प्रस्तुति…

Rakesh Kumar ने कहा…

आपके निश्छल प्रेम की अमर बेल सदा सदा हरी भरी रहे.

आभार

Pratibha Verma ने कहा…


बहुत खूब।

अभिषेक शुक्ल ने कहा…

बहुत सुन्दर आदरणीया..।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति ... आपका साथ, मधुर प्रेम बना रहे ...
बधाई हो ...