मेरे इश्क की दुल्हन
श्रृंगार विहीन होने पर ही सुन्दर लगा करती है
फिर नज़र के टीके के लिए
रात की स्याही कौन लगाये
बस चाँद का फूल ही काफी है
उसके केशों में सजने को
जाने क्यों फिर भी
एक मुट्ठी स्याह रात
खिसक ही जाती है हाथों से
और गिर जाती है
मेरे इश्क की दुल्हन की चूनर पर
और जल जाता है सारा आस्माँ
उदास रातों के कहरों की
डोलियाँ उठाने को
जरूरी नहीं चार कहारों का होना ही ……
6 टिप्पणियां:
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (03-01-2015) को "नया साल कुछ नये सवाल" (चर्चा-1847) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
sundar prastuti vandana ji
सुंदर अभिव्यक्ति..
बहुत खूब
बहुत सुंदर
Thank you sir. Its really nice and I am enjoing to read your blog. I am a regular visitor of your blog.
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