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भूख भूख भूख
एक शब्द भर नहीं
इसके कारण ही होते
दुनिया भर के अनर्थ
फिर चाहे सबके लिये हों
इसके अनेक अर्थ
भूख
पेट की हो
तो हो जाती है
दो रोटी में भी शांत
फिर चाहे तुम उसे
महज़ 26 रुपये में करो
या दो रुपये में
क्या फ़र्क पडता है
बस पेट का काम तो है
खुद को भरना किसी भी तरह
और इसके लिये जरूरी नहीं होता
किसी छोटी रेखा के आगे
एक और बडी रेखा का खींचना
मगर भूख उस वक्त
सुरसा सी भयावह होती है
जहाँ इच्छाओं का काला लबादा ओढे
कोई साया सिर्फ़ टहलना भर नहीं चाहता
उसे चाहिये होता है
पूरा का पूरा साम्राज्य
उसे चाहिये होता है
पूरा का पूरा आसमान
पैर ज़मीन पर ना रखने की धुन में
आसमान में सुराख करने की चाहत में
खुद को सबका मालिक सिद्ध करने की भूख में
बिलबिलाता साया नहीं जान पाता
कितनी चींटियाँ मसली गयीं उसके पाँव के नीचे
कितने रेंगते कीडे कुचले गये उसकी गाडी के नीचे
और खुद को खुदा बनाने की भूख
अंतडियोँ मे इस कदर उबाल लेती है
कि मिट जाते हैं अन्तर गलत और सही के
और चल पडता है वो उस अन्धेरी गुफ़ा में
जहाँ रौशनी की दरकार नहीं होती
होती है तो सिर्फ़ ………भूख
खुद को पितामह सिद्ध करने की
और ऐसी भूखों के अन्तिम छोर नहीं हुआ करते
फिर भी दलदल में धंस जाते हैं पाँव
आँख होते हुये भी अंधा बनकर
क्योंकि
भूख बडी चीज़ है ………सबसे ऊपर
फिर सत्तारूढ होने के लिये इतना जोखिम तो उठाना है पडता
मगर इस सुरसा का पेट ना कभी है भरता
क्रमश: ……………
भूख भूख भूख
एक शब्द भर नहीं
इसके कारण ही होते
दुनिया भर के अनर्थ
फिर चाहे सबके लिये हों
इसके अनेक अर्थ
भूख
पेट की हो
तो हो जाती है
दो रोटी में भी शांत
फिर चाहे तुम उसे
महज़ 26 रुपये में करो
या दो रुपये में
क्या फ़र्क पडता है
बस पेट का काम तो है
खुद को भरना किसी भी तरह
और इसके लिये जरूरी नहीं होता
किसी छोटी रेखा के आगे
एक और बडी रेखा का खींचना
मगर भूख उस वक्त
सुरसा सी भयावह होती है
जहाँ इच्छाओं का काला लबादा ओढे
कोई साया सिर्फ़ टहलना भर नहीं चाहता
उसे चाहिये होता है
पूरा का पूरा साम्राज्य
उसे चाहिये होता है
पूरा का पूरा आसमान
पैर ज़मीन पर ना रखने की धुन में
आसमान में सुराख करने की चाहत में
खुद को सबका मालिक सिद्ध करने की भूख में
बिलबिलाता साया नहीं जान पाता
कितनी चींटियाँ मसली गयीं उसके पाँव के नीचे
कितने रेंगते कीडे कुचले गये उसकी गाडी के नीचे
और खुद को खुदा बनाने की भूख
अंतडियोँ मे इस कदर उबाल लेती है
कि मिट जाते हैं अन्तर गलत और सही के
और चल पडता है वो उस अन्धेरी गुफ़ा में
जहाँ रौशनी की दरकार नहीं होती
होती है तो सिर्फ़ ………भूख
खुद को पितामह सिद्ध करने की
और ऐसी भूखों के अन्तिम छोर नहीं हुआ करते
फिर भी दलदल में धंस जाते हैं पाँव
आँख होते हुये भी अंधा बनकर
क्योंकि
भूख बडी चीज़ है ………सबसे ऊपर
फिर सत्तारूढ होने के लिये इतना जोखिम तो उठाना है पडता
मगर इस सुरसा का पेट ना कभी है भरता
क्रमश: ……………
4 टिप्पणियां:
ati sundar..vicharon ko jhakjorne wali sarthak rachna ke liye bahut bahut badhai..!!
भूख को खुद ही शांत करना पड़ता है ... पर अगर ये आग की तरह हो तो सब कुछ निगल के भी शांत नहीं होती ...
भूख क्या न करवाए ...
सुंदर शब्द चित्रण
बहुत बढिया.
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