अभी थोडी देर के लिये बैठ पायी तो सबसे पहली पोस्ट तेजेन्द्र शर्मा जी की वाल पर पढी तो वहाँ की सोच पर ये ख्याल उभर आये तो लिखे बिना नहीं रह पायी अब चाहे तबियत इजाज़त दे रही है या नहीं मगर हम जैसे लोग रुक नहीं पाते चाहे बच्चे डाँटें कि मम्मा रैस्ट कर लो अभी इस लायक नहीं हो मगर खुद से ही मज़बूर हैं हम …………तो ये ख्याल उभरा जो आपके सम्मुख है पश्चिमी सोच और हमारी सोच के फ़र्क को इंगित करने की कोशिश की है:
ये था उनकी वाल पर जो नीचे लिखा है तो उस पर मेरे ख्याल कविता के रूप में उतर आये
मित्रो
मेरे साथ हैच-एण्ड स्टेशन पर एक सहकर्मी हैं फ़िलिप पामर। उनसे बात हुई कि मुझे यू.पी. हिन्दी संस्थान द्वारा दो लाख रुपये का सम्मान दिया जा रहा है।
उसने बहुत मासूम अन्दाज़ में पूछा, "Tej, in terms of real money, how much would it be." मैनें कल के रेट 1 पाउण्ड = 94 रुपये के हिसाब से बता दिया कि क़रीब क़रीब 2,240/- पाउण्ड बनेंगे। मन में कहीं एक टीस सी भी महसूस हुई कि भारत की करंसी Real Money नहीं है।
उसका जवाब था, "That is still a good amount."
सोच का फर्क
ये था उनकी वाल पर जो नीचे लिखा है तो उस पर मेरे ख्याल कविता के रूप में उतर आये
मित्रो
मेरे साथ हैच-एण्ड स्टेशन पर एक सहकर्मी हैं फ़िलिप पामर। उनसे बात हुई कि मुझे यू.पी. हिन्दी संस्थान द्वारा दो लाख रुपये का सम्मान दिया जा रहा है।
उसने बहुत मासूम अन्दाज़ में पूछा, "Tej, in terms of real money, how much would it be." मैनें कल के रेट 1 पाउण्ड = 94 रुपये के हिसाब से बता दिया कि क़रीब क़रीब 2,240/- पाउण्ड बनेंगे। मन में कहीं एक टीस सी भी महसूस हुई कि भारत की करंसी Real Money नहीं है।
उसका जवाब था, "That is still a good amount."
सोच का फर्क
कर जाता है फर्क
तुम्हारे और मेरे नज़रिए में
तुमने सिर्फ पैसे को सर्वोपरि माना
तुम बेहद प्रैक्टिकल रहे
बेशक होंगी कुछ संवेदनाएं
तुम्हारे भी अन्दर महफूज़
किसी खिलते गुलाब की तरह
मगर नहीं सहेजी होंगी तुमने कभी
उसके मुरझाने के बाद भी
यादों के तकियों में तह करके
नहीं पलटे होंगे तुमने कभी
अतीत के पन्ने
क्योंकि तुम हमेशा आज में जिए
तुम्हारे लिए तुम महत्त्वपूर्ण रहे
तुम्हारे लिए तुम्हारी प्राथमिकताएं ही
तुम्हारा जीवन बनी
जिन्होंने तुम्हें हमेशा उत्साहित रखा
बस यही तो फर्क है
तुम्हारी और मेरी सोच में
मैं और मेरी संवेदनाएं
सिर्फ कब्रगाह तक पहुँच कर ही दफ़न नहीं हुयीं
जीवित रहीं फ़ना होने के बाद भी
एक अरसा गुजरा
मगर कभी अतीत से बाहर न निकल पाया
बेशक आज में जीता हूँ
मगर
अतीत को भी साथ लेकर चलता हूँ
शायद तभी ज्यादा भावुक
संवेदनशील कहलाता हूँ
और जीवन के हर पथ पर मात भी खाता हूँ
जो तुम्हारे लिए महज पैसे की तराजू में
तोली जा सकने वाली वस्तु हो सकती है
जिसका अस्तित्व महज चंद सिक्के हो सकता है
तुम्हारे लिए
मेरे लिए मेरे जीवन भर की उपासना का प्रतिफल है वो
मेरे लिए मेरे अपनों का भेज शुभाशीष है वो
मेरे लिए मेरे अपनों का प्रेम है वो
किसी भी सम्मान को पाना और सहेजना
गौरान्वित कर जाता है मन : मस्तिष्क को
मगर तुम ये नहीं समझ सकते
क्योंकि
यही कमी कहो या फर्क है तुम्हारी और मेरी सोच में
ओ पश्चिमी सभ्यता के वाहक मेरे सफ़र के साथी
मैं भारतीय हूँ सबसे पहले
जहाँ नहीं तोले जाते सम्मान सिक्कों के तराजू पर
22 टिप्पणियां:
वन्दना जी आराम कीजिए।
ब्लॉग कहीं भागा नहीं जा रहा है।
न ही कोई ईनाम मिलने वाला है रोज-रोज लिखने का।
पहले आप स्वस्थ हो जाइए, फिर दिन की दस-दस पोस्ट लगा लेना, अपने तीनों ब्लॉग्स पर।
:) behtareen..
aaram karo aap
Eid Mubarak..... ईद मुबारक...عید مبارک....
भारत और भारतीय - यह गौरव बना रहे - बहुत ही खूबसूरत सोच उभरी
"चाहे बच्चे डांटे की मम्मी रेस्ट कर लो …… "
Old habits die hard :) anyway, get well soon, Vandna ji !
बहुत बढिया..
बहुत ही खूबसूरत सोच
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल शनिवार (10-08-2013) को “आज कल बिस्तर पे हैं” (शनिवारीय चर्चा मंच-अंकः1333) पर भी होगा!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मैं भारतीय हूँ सबसे पहले
जहाँ नहीं तोले जाते सम्मान सिक्कों के तराजू पर ... wakai.
take care of your health.eat well, sleep well.
regards
कल 11/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
बहुत खूब असरदार संवेदनाएं ,शीघ्र स्वस्थ हों
आपके जज्बे को सलाम. बहुत बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
Sach hee kah rahi ho....ham sabse pahle Bharteey hain.......aur tabiyat ko kya hua?
लेखन तो जीवन भर चलता रहेगा वंदना जी । आराम कीजिए।
सारा फ़र्क ही सोच का है । बहुत सही कहा ।
लाज़वाब प्रस्तुति...शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना...
बहुत सुंदर ...
अक्सर ऐसा ही होता है । सच बात ।
बहुत सुन्दर बात कही है
भारतीयता का महत्व समझाती कविता है आपकी ।
आप विश्राम करें और जल्दी स्वस्थ हों इस शुभेच्छा के साथ ।
शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना के साथ सही सोच और गौरव अक्षुण रहे इसलिए भी शुभकामनायें.
Well ACHHI HAI but "Soch ka Farq" todi chhoti hoti to jayaada acchee lagti.....
DINESH PARMAR
पहले तो जल्दी से ठीक हो जाओ ,
दुसरे ये पोस्ट बहुत टीस जगा गयी मन के भीतर .., भारतीयता की सोच बदलना है .
दिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
waah kya baat hai, sach me soch bahut bada antar paida kar deti hai....
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