सुना था
जो चले जाते हैं
वापस नहीं आते
मगर जो कभी गए ही नहीं
वजूद पर अहसास बन कर तारी रहे
अब रोज उनके साथ
सुबह की चाय
सूरज की पहली किरण
पंछियों की चहचहाट
और एक खुशनुमा सुबह
का आगाज़ होता है
और दोपहर की
गुनगुनी धूप में
एक टुकड़ा मेरी खिड़की पर
रुक जाता है .........
उस टुकड़े में परछाइयाँ नहीं होतीं
लपेट लेती हूँ उसे
तेरे वजूद के इर्द गिर्द
और फिर सांझ ढले
सुरमई लालिमा का
एक टुकड़ा
जब तेरी हँसी सा खिलखिलाता है
रुक जाती है साँझ भी
मेरी दहलीज पर ........इंतज़ार बनकर
तो कभी एक ख्वाब बनकर
तो कभी एक अहसास बनकर
तो कभी एक हकीकत बनकर
और मैं
ढूंढती नहीं कुछ भी उसमे
सिर्फ सहेजती हूँ हर पल को
सहेजती हूँ तेरे दिए
हर लम्हे की बेजुबान कड़ियों को
कहीं ज़माने की नज़र ना लग जाए
लगा देती हूँ .........मोहब्बत का टीका
और ढांप देती हूँ
मन के किवाड़ ............रात होने तक
और फिर
रात्रि की नीरव शांति में
निकालती हूँ तुम्हारी खामोश नज़र को
लो देख लो चाँद को
कर लो दीदार
भीग लो इसकी चाँदनी में
फिर ना कहना ..........बहुत इंतजार करवाया
और समेट लेती हूँ
तुम्हारी नज़र से गिरती ओस को
तुम्हारी नज़र के स्पर्श को
तुम्हारे अनकहे वक्तव्य को
तो बताओ तो ज़रा
तुम कहाँ हो मुझसे जुदा
हर पल , हर लम्हा
तेरा ही वजूद लिपटा होता है
मेरे साये से
और मैं खुद को ढूंढती हूँ
कभी चाय के प्याले में
कभी सुबह की ओस में
कभी दोपहर की धूप में
तो कभी सांझ की लालिमा में
क्या तुम्हें मिली मैं ?
कहीं किसी जन्म की हसरत बनकर
या किसी रांझे की हीर बनकर
या तुम्हारी नज़र का स्पर्श बनकर
ओह ! मेरी तिलस्मी मोहब्बत
ढूँढ सको तो ढूँढ लेना कोई ऐयार बनकर ............
जानते हो ना ………दीवानगियों के नाम नही हुआ करते
जो चले जाते हैं
वापस नहीं आते
मगर जो कभी गए ही नहीं
वजूद पर अहसास बन कर तारी रहे
अब रोज उनके साथ
सुबह की चाय
सूरज की पहली किरण
पंछियों की चहचहाट
और एक खुशनुमा सुबह
का आगाज़ होता है
और दोपहर की
गुनगुनी धूप में
एक टुकड़ा मेरी खिड़की पर
रुक जाता है .........
उस टुकड़े में परछाइयाँ नहीं होतीं
लपेट लेती हूँ उसे
तेरे वजूद के इर्द गिर्द
और फिर सांझ ढले
सुरमई लालिमा का
एक टुकड़ा
जब तेरी हँसी सा खिलखिलाता है
रुक जाती है साँझ भी
मेरी दहलीज पर ........इंतज़ार बनकर
तो कभी एक ख्वाब बनकर
तो कभी एक अहसास बनकर
तो कभी एक हकीकत बनकर
और मैं
ढूंढती नहीं कुछ भी उसमे
सिर्फ सहेजती हूँ हर पल को
सहेजती हूँ तेरे दिए
हर लम्हे की बेजुबान कड़ियों को
कहीं ज़माने की नज़र ना लग जाए
लगा देती हूँ .........मोहब्बत का टीका
और ढांप देती हूँ
मन के किवाड़ ............रात होने तक
और फिर
रात्रि की नीरव शांति में
निकालती हूँ तुम्हारी खामोश नज़र को
लो देख लो चाँद को
कर लो दीदार
भीग लो इसकी चाँदनी में
फिर ना कहना ..........बहुत इंतजार करवाया
और समेट लेती हूँ
तुम्हारी नज़र से गिरती ओस को
तुम्हारी नज़र के स्पर्श को
तुम्हारे अनकहे वक्तव्य को
तो बताओ तो ज़रा
तुम कहाँ हो मुझसे जुदा
हर पल , हर लम्हा
तेरा ही वजूद लिपटा होता है
मेरे साये से
और मैं खुद को ढूंढती हूँ
कभी चाय के प्याले में
कभी सुबह की ओस में
कभी दोपहर की धूप में
तो कभी सांझ की लालिमा में
क्या तुम्हें मिली मैं ?
कहीं किसी जन्म की हसरत बनकर
या किसी रांझे की हीर बनकर
या तुम्हारी नज़र का स्पर्श बनकर
ओह ! मेरी तिलस्मी मोहब्बत
ढूँढ सको तो ढूँढ लेना कोई ऐयार बनकर ............
जानते हो ना ………दीवानगियों के नाम नही हुआ करते
21 टिप्पणियां:
कुछ लोग तब जाते हैं जब खुद इंसान जाता है ... बहुत गहरी बात कह डी आपने ...
वाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको
ऐयार का इन्तजार..बहुत सुन्दर..
बेहद बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति ..प्रवाह भी बहुत अच्छा है.
तिलिस्म, अय्यार....वाह जी वाह ।
गुनगुनी धूप का एक टुकड़ा खिड़की पर और उसीमें पूरा दिन ...
हँसी सुन रूकती है सांझ ... और घर लौटने का सबब
....... इस दीवानगी का नाम कोई दीवाना क्या रखेगा - तो बेनाम ही सही
यादों से भरी दिल को छू लेने वाली कविता...
बहुत ही सुन्दर..
वाकई...
मुहब्बत एक तिलिस्म है।
सुन्दर रचना।
रुमान सराबोर!
इस अनाम से संबंध को महफ़ूज़ रखना चाहिए।
OH IT'S AMAZING,
SO SENTIMENTAL AND....
SORRY , I HAVE NO WORDS TO APPRECIATE THIS POEM.
KEEP IT UP MA'M.
bahut khoobsoorat...
बहुत अच्छी पंक्तियाँ ..
वाह वाह................
बहुत प्यारी रचना वंदना जी.....
लाजवाब!!!
अनु
search without any anger .so nice post .
यह तो बड़ा जटिल काम बता दिया आपने ...
कारगिल युद्ध के शहीदों को याद करते हुये लगाई है आज की ब्लॉग बुलेटिन ... जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी – देखिये - कारगिल विजय दिवस 2012 - बस इतना याद रहे ... एक साथी और भी था ... ब्लॉग बुलेटिन – सादर धन्यवाद
वाह ... बहुत खूब कहा आपने ...
बेहतरीन रचना..
बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
प्रवाह मयी रचना ... खूबसूरत खयाल
दीवंगियों का नाम नहीं होता. बहुत गहरी बातें सुंदर कविता...
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