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शनिवार, 7 जुलाई 2012

और तुम वहीँ एक बुत बन जाओ ...........हवा, मिटटी और छुअन का

ये शहरों की मिट्टियाँ भी अजीब होती हैं ना 
रूप रस गंध सबसे जुदा 
देखो आज मेरे क़दमों ने फिर 
तुम्हारे शहर की कदमबोसी की है 
कोई अनजानी सी हवा छूकर गयी है 
एक नमकीन सा अहसास करा गयी है 
मगर अजनबियत की गंध भी बिखरा गयी 
क्या मिट्टियाँ इतनी जल्दी बदल जाती हैं 
या उनकी गंध में प्रदूषण बढ़ गया है 
देखो तो मेरे दिल की मिटटी तो 
आज तक गीली है तुम्हारी नमी से 
हाँ उसी नमी से 
जो तुम्हारे लबों पर तैरा करती थी 
जब तुम मुझमे चाँद ढूँढा करते थे 
और चाँद अठखेलियाँ करता 
मेरी जुल्फों में छुप जाया करता था 
जुल्फों की पनाहों में चाँद की हसरतें 
कितनी मासूम सी मचला करती थीं 
देखो ना .........
कितनी नम है ना आज भी मिटटी तुम्हारी यादों की 
फिर तुम्हारे शहर की मिटटी पर कौन सा पाला पड़ गया है 
चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ बजरी बिखरी पड़ी है 
जिसमे कोई पौध नहीं उगा करती 
मगर चुभे तो ज़ख्म दे जाती है ……
क्या हुआ है तुम्हारे शहर को ? 
कौन सी आसमानी बिजली ने राख़ किया है आशियाने को…
उम्र के बदलने से आशियाने नहीं बदला करते 
कोई ज्यादा वक्त तो नहीं गुजरा है ना 
सिर्फ उस जन्म से इस जन्म तक का ही तो फासला तय किया है……
देखो रुसवा ना हो जाये मोहब्बत फासला तय करते करते
एक कदम तुम भी तो बढाओ ना
आवाज़ दो ना ......
देखो कब से मैंने तुम्हारी मिटटी को अश्कों की स्याही से नम बना रखा है 
मैंने तो सुना है शहरों की मिट्टियाँ तो 
कदमबोसी के इंतज़ार में कुदरत के नियम बदल दिया करती हैं 
ओह ! कहाँ हो ? ओ मेरे अहसासों के सुलगते वजूद 
कहीं तुम्हारे शहर की हवा और मिटटी पर ही 
मेरी कब्र ना बन जाए और जब तुम गुजरो करीब से 
तुम्हें छू जाए और तुम वहीँ एक बुत बन जाओ ...........हवा, मिटटी और छुअन का 
जानते हो ना वक्त की करवटों पर गुलाब नहीं उगा करते 

27 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

वाह वन्दना जी, जीवन को एक नए आयाम से देखना और उसे माधुर्य प्रदान करना, वास्तव में एक सुखद अहसास है, साथ ही जीवन के कठोर सचों को माधुर्य के साथ जोडना अद्वितीय भी...

vijay kumar sappatti ने कहा…

क्या बात .. बहुत खूब.. मोहब्बत में ऐसा ही होता है जी . बधाई स्वीकार करे और आपका आभार !
कृपया मेरे ब्लोग्स पर आपका स्वागत है . आईये और अपनी बहुमूल्य राय से हमें अनुग्रहित करे.

कविताओ के मन से

कहानियो के मन से

बस यूँ ही

विजय

Aparajita ने कहा…

Very Nice. Adorable

सदा ने कहा…

जानते हो न वक्‍त की करवटों पर गुलाब नहीं उगा करते ... बहुत खूब ... उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ... आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बारिश के साथ भाव भी खूब नम हुये हैं ...सुंदर प्रस्तुति

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

तेरे लबों की नमी से मेरे दिल की मिट्टी अब तक नम है...................
बहुत सुन्दर भाव वंदना जी.
सस्नेह
अनु

Onkar ने कहा…

bahut sundar abhivyakti

विभूति" ने कहा…

एहसासों को अपने शब्द देकर जिवंत कर दिया आपने.....

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

समय देख कर मिट्टियों के सुर भी बदल जाते है.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जिस तरह शर वापस तरकश में रख दिया जाए कि अजेय को क्या हराना !!!
वैसे ही मैंने आपके भावों के आगे मौन समर्पण कर दिया .......
भावों की इस धरती पर आपके हर शब्द उर्वरक हैं , हर नींव मजबूत है

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।

pran sharma ने कहा…

KHOOB ! BAHUT KHOOB !!

pran sharma ने कहा…

KHOOB ! BAHUT KHOOB !!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत खूब ... उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति लाजबाब रचना ,,,,

RECENT POST...: दोहे,,,,

शेखचिल्ली का बाप ने कहा…

गहरी बातें.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वक्त जब करवट बदलता है बहुत कुछ बदल जाता है..

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

vakt ke sath bahut kuchh badal jata hai hame is badlaav ke liye taiyar rahna chaahiye varna in aankho ki nami kabhi nahi sookh payegi.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (08-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

उत्तम अभिव्यक्ति .... !!

रचना दीक्षित ने कहा…

शहरों में घुलती अज्नीबियत गंभीर प्रश्न है.

बहुत खूबसूरती से विषय को समझाने की कोशिश इस कविता में.

संध्या शर्मा ने कहा…

अहसासों की नमी इस मिट्टी को हमेशा बनाये नाम रखेगी...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...आभार

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

उम्र के बदलने से आशियाने नहीं बदला करते ...

सुन्दर रचना

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत सुन्दर भावभीनी रचना...
सुन्दर अभिव्यक्ति....
:-)

Suresh kumar ने कहा…

जानते हो न वक्‍त की करवटों पर गुलाब नहीं उगा करते .....
बहुत ही गहन भाव लिए हुए खुबसूरत रचना.....

Kailash Sharma ने कहा…

हवा, मिटटी और छुअन का जानते हो ना वक्त की करवटों पर गुलाब नहीं उगा करते

....बहुत खूब! बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...

Rajesh Kumari ने कहा…

मेरे मन की मिटटी अब तक नम है क्या हुआ तुम्हारे शहर की मिटटी को ...बहुत सुन्दर बिम्ब दिखाया है तुलनात्मक प्यार की अवस्थाएं मन की भावनाएं अति सुन्दर

शिवनाथ कुमार ने कहा…

बहुत ही सुंदर भाव वंदना जी .....