नहीं हूँ मैं
इस दुनिया की शायद
कोई तो वजह जरूर है
जो ये ख्याल उड़ कर
मन की खिड़की से
अन्दर आया है
गर होती इसी दुनिया की
तो सोचती दुनिया के जैसे
बन जाती गर प्रैक्टिकल
भावनाओं के तूफानों में ना बहती
ना ही किसी हवा के झोंके में उलझती
दिल को एक खिलौना समझती
रोज इसके सौ टुकड़े करती
और फिर भी मुस्कुराती
हँसती खिलखिलाती
नहीं होता मुझ पर असर
किसी की पीड़ा का
किसी के दर्द का
ना ही आहत होती
किसी की बातों से
बल्कि आहत करना जानती
तो शायद मैं दुनिया जैसी बन जाती
आज का युग सुना है
तेजी से बदल रहा है
जहाँ सिर्फ उसी का
झंडा बुलंद होता है
जो विरोधी स्वर रखता है
कोई एक गाल पर मारे
तो दूजा आगे करने की बजाय
जो उल्टा धर देता है
आज उसी का तो
बोलबाला होता है
और मुझमे एक भी
ऐसी प्रवृति का ना संचार हुआ
आत्मकेंद्रित भावनात्मक प्रवृत्तियां
कभी कभी
कितना रुसवा करती हैं
अब उन जैसी बन नहीं पाती
और साथ भी चल नहीं पाती
ये कैसी चाल वक्त ने चली है
जो मुझे रास ना आई है
तभी तो मेरे किनारे तक
कोई लहर आती ही नहीं
अलग थलग सा हो गया है
वजूद मेरा
चारों तरफ फैली भीड़ के
अथाह सागर में
खुद को खोज रही हूँ
और सोच रही हूँ
शायद नहीं थी इस दुनिया की मैं
बेगाने देस में बेगाने पंछियों का डेरा
सांझ के फेरे सा ही तो होता
कब कोई पंछी वहाँ घोंसला बना पाता है
उड़ कर अपने देस जाना ही होता है
परायों के देस मे कब पंछियों को नीड मिले हैं ………
25 टिप्पणियां:
at one point of time all of us think this way
nice poem
परायों के देश में कब पंछियों को नीड़ मिले हैं ... बेहद सशक्त भाव लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति ... आभार
हमारे मन में हर पल कुछ नया उपजता रहता है...अच्छे बुरे ख्यालों का डेरा है यहाँ.....
बहुत सुन्दर वंदना जी.
अनु
बहुत अच्छी कविता वंदना , specially अंत तो बहुत अच्छा है .. और इस बार शब्द भी अच्छे चुने है. भाव और खिल गये है . बधाई ..
ओह! वन्दना जी, फिर तो आप जरूर ही कोई अन्य दुनिया से आई एलियन हैं.इस दुनिया से जरा अलग हटकर.
हमें आप जैसी आत्मकेंद्रित,दार्शनिक विचारों
वाली,बच्चों सी निश्छल एलियन पर गर्व है.
शायद कबीर जी आपकी ही दुनिया के थे
उनका भी कहना था
'रहना नही देश बिराना है
यह संसार झांड और झाँखर
उलझ पुलझ मर जाना है.
आप इसी दुनिया की हैं और यहीं रहें नहीं तो हमे इतनी सुन्दर पोस्ट कहाँ मिलेंगे :-)
its a great poetry.....really...VANDANA ji you once again touch a deep hearts feeling.....mukesh
great poetry vandana ji really ...its touch every ones' heart
परायों के देस मे कब पंछियों को नीड मिले हैं ……
...बहुत सच कहा है...अंतस को छूती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
जी हाँ ये देस पराया है
एक रोज उड़ कर
अपने देस जाना है
गहन भाव, मर्मस्पर्शी रचना... आभार
मन को छूती बेहद सशक्त भाव लिए सुन्दर प्रस्तुति ... आभार वंदना जी..
यह संसार तो पराया है .... लेकिन जब तक जीवन है इसी में रहना है और इसी का हो कर रहना है ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति
दुनिया का होकर भी जो गलत व्यवहारिकता से परे रहे - वह दुनिया से अलग होता है और शब्दों में बहता है ... तभी तो भावनाएं खिड़कियों के रास्ते आती हैं
ये अक्सर हो जाता है .यूँ उदास होकर कही अपना रुख बदलना आपकी फितरत कब से बन गयी.
हौसला तोड़कर जाना भी बुरी बात है .....
अंत में जीत सत्य और अहिंसा की ही होती है।
देश विराना लागे रे,
मनवा रह रह भागे रे।
हाँ ये देस पराया है...
Kharab tabiyat ke karan na padh pati hun na likh.....lekin tumhen aur tumhare lekhan ko yaad har samay karti hun...
ek acchi prastuti....
इस देश की न होते हुवे भी आज तो इस देश में नि हैं ... तो इस देश के अनुसार करना ही पड़ेगा .... इसी अनुसार जीना ही पड़ेगा ...
सुंदर कविता सुंदर भाव लिए.
उड़ कर अपने देस जाना ही होता है
परायों के देस मे कब
पंछियों को नीड मिले हैं ………
..... बहुत अच्छी प्रस्तुति....
दुनिया को समझते समझते मन में जाने कितने भी भाव उमड़ने घुमड़ने लगते हैं और फिर लगता है की ये दुनिया कहाँ किसी की है .....
बहुत अच्छी चिंतन के धरातल पर रचित रचना ...
bhawnatmak sachhai se bani hui rachna..very nice..
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