अब नहीं उतरती धूप
मेरे चौबारे पर
शायद कहीं और
आशियाँ बना लिया उसने
कौन उतरता है
सीले हुए मकान में
घुटन , बदबूदार
अँधेरी कोठरियां
डराती हैं
बंद तहखाने
हजारों कीड़ों की
शरणस्थली बन जाते हैं
ये रेंगते हुए
कीड़े मकौड़े
किसी और के
अस्तित्व को
स्वीकार नहीं पाते
डँस लेते हैं
अपने दंश से
धराशायी कर देते हैं
लहूलुहान हो जाता है
बिखरा हुआ अस्तित्व
ऐसी चौखटों पर
कौन आशियाना
बनाना चाहेगा
जिस पर सुबह
का पैगाम ना
पहुँचता हो
जिस पर सांझ की
बाती ना जलती हो
जहाँ सिर्फ और सिर्फ
अंधेरों का वास हो
बताओ कैसे
उन चौबारों पर
धूप उतरेगी
किसे गर्माहट देगी
किसे अपने रेशमी
स्पर्श से सहलाएगी
कैसे अँधेरी खोह में
छुपी नमी को सुखाएगी
आखिर उसकी भी
एक सीमा होती है
सीमाओं का अतिक्रमण
चाह कर भी नही कर पाती
एक मर्यादा होती है
शायद इसलिए
अपना आशियाना
बदल देती है
धूप भी मजबूर होती है
दस्ताने पहनने को………
मेरे चौबारे पर
शायद कहीं और
आशियाँ बना लिया उसने
कौन उतरता है
सीले हुए मकान में
घुटन , बदबूदार
अँधेरी कोठरियां
डराती हैं
बंद तहखाने
हजारों कीड़ों की
शरणस्थली बन जाते हैं
ये रेंगते हुए
कीड़े मकौड़े
किसी और के
अस्तित्व को
स्वीकार नहीं पाते
डँस लेते हैं
अपने दंश से
धराशायी कर देते हैं
लहूलुहान हो जाता है
बिखरा हुआ अस्तित्व
ऐसी चौखटों पर
कौन आशियाना
बनाना चाहेगा
जिस पर सुबह
का पैगाम ना
पहुँचता हो
जिस पर सांझ की
बाती ना जलती हो
जहाँ सिर्फ और सिर्फ
अंधेरों का वास हो
बताओ कैसे
उन चौबारों पर
धूप उतरेगी
किसे गर्माहट देगी
किसे अपने रेशमी
स्पर्श से सहलाएगी
कैसे अँधेरी खोह में
छुपी नमी को सुखाएगी
आखिर उसकी भी
एक सीमा होती है
सीमाओं का अतिक्रमण
चाह कर भी नही कर पाती
एक मर्यादा होती है
शायद इसलिए
अपना आशियाना
बदल देती है
धूप भी मजबूर होती है
दस्ताने पहनने को………
44 टिप्पणियां:
धूप भी मजबूर होती है
दस्ताने पहनने को………
है तेरी रौशनी में जो दम
तू अमावस को करदे पूनम
"न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः"
उसकी धूप को दस्ताने कैसे पहनाएँगी वंदनाजी.
उसको ध्याया है तो वह आएगा ही.और फिर
रौशनी में नहाओगी ही नहीं सभी को नहला दोगी.
अच्छी अभिव्यक्ति !!
:)
laajabaab didi
धूप की मज़बूरी या हमारा आशियाना ? बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,
@ ऐसी चौखटों पर
कौन आशियाना
बनाना चाहेगा
जिस पर सुबह
का पैगाम ना
पहुँचता हो
जिस पर सांझ की
बाती ना जलती हो
जहाँ सिर्फ और सिर्फ
अंधेरों का वास हो .
---यथार्थ है, लेकिन आज ऐसी ही चौखटों को रौशन करने की ज़रूरत है,जहां अन्धेरा ही अन्धेरा है. बहरहाल एक संवेदनशील रचना के लिए आभार.
अब नहीं उतरती धूप
मेरे चौबारे पर
शायद कहीं और
आशियाँ बना लिया उसने
कौन उतरता है
सीले हुए मकान में
*
वंदना जी, इतनी ही कविता पर्याप्त है। सारी बात इसमें आ जाती है।
अच्छी अभिव्यक्ति !!
धूप की मजबूरी को ब खूबी उभारा है आपने.
सादर
अब नहीं उतरती धूप
मेरे चौबारे पर
शायद कहीं और
आशियाँ बना लिया उसने
कौन उतरता है
सीले हुए मकान में
bahut gahra likh gayi hai vandana ji .......ahsaason se bhari hui ye kavita hai.
धूप की राह में किसी मल्टी ने अपना घेरा तो नहीं बना दिया ।
धूप भी मजबूर होती है
दस्ताने पहनने को………
वाह,,,बेहतरीन भावाभिव्यक्ति !!
ऐसी चौखटों पर
कौन आशियाना
बनाना चाहेगा
जिस पर सुबह
का पैगाम ना
पहुँचता हो
जिस पर सांझ की
बाती ना जलती हो
जहाँ सिर्फ और सिर्फ
अंधेरों का वास हो ।
आशियानों का दर्द सजीव होकर कविता में उतर आया है।
मन पर अमिट चिह्न छोड़ती यह कविता अच्छी लगी।
वन्दना जी -आपकी कविता ने तो छाया के आगे धूप को भी गौण कर दिया ......बहुत खूब !
बादल छा जाते हैं
तो धूप भी मजबूर होती है
क्योंकि छाँव
नशे में चूर होती है!
--
बहुत सुन्दर रचना!
एक मर्मस्पर्शी रचना ......
अक्षय-मन
धूप भी मजबूर होती है..
आखिर उसकी भी
एक सीमा होती है
सीमाओं का अतिक्रमण
चाह कर भी नही कर पाती...
खासकर ये पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं. भावप्रवण, संवेदनशील रचना...
धूप भी मजबूर होती है
वाह !!!सुन्दर अभिव्यक्ति
धूप भी मजबूर होती है
वाह !!!!
सुन्दर अभिव्यक्ति
दूसरों का ख्याल रखने वालों का यही हाल होता है।
बहुत अच्छा
मेरी नई पोस्ट देखें
मिलिए हमारी गली के गधे से
धूप भी मजबूर होती है
दस्ताने पहनने को………
Beautiful imagination !
.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|आभार|
बहुत सुंदर....
that was a nice poem
really like it
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
nice feelings...
धूप उतरेगी
किसे गर्माहट देगी
किसे अपने रेशमी
स्पर्श से सहलाएगी
कैसे अँधेरी खोह में
छुपी नमी को सुखाएगी
आखिर उसकी भी
एक सीमा होती है
.....
क्या कोमल अहसास हैं.. अद्भुत प्रस्तुति
धूप भी मजबूर होती है
दस्ताने पहनने को………
विरोधाभाषी तेवर की रचना ...
सुन्दर अभिव्यक्ति
रचना में भावाभिव्यक्ति बहुत अच्छी है.. ...बधाई.
बादल छा जाते हैं
तो धूप भी मजबूर होती है
क्योंकि छाँव
नशे में चूर होती है!
वाह क्या बिम्ब उभारा है आपने .....छाँव का नशे में चूर होना बहुत गहरे अर्थ संप्रेषित करता है ....आपका आभार
जहाँ सिर्फ अँधेरे का वास हो , धूप कब तक सर पटकेगी ...
सार्थक अभिव्यक्ति !
utkrisht rachana ka hriday se swagat . abhar ji
...
जिस पर सुबह
का पैगाम ना
पहुँचता हो
जिस पर सांझ की
बाती ना जलती हो
जहाँ सिर्फ और सिर्फ
अंधेरों का वास हो .
.. संवेदनशील रचना के लिए आभार....वन्दना जी
hriday ke sookshmtam bhavon ki prabhavpoorn rachna.
बताओ कैसे
उन चौबारों पर
धूप उतरेगी
किसे गर्माहट देगी
किसे अपने रेशमी
स्पर्श से सहलाएगी
कैसे अँधेरी खोह में
छुपी नमी को सुखाएगी
आखिर उसकी भी
एक सीमा होती है
सीमाओं का अतिक्रमण
चाह कर भी नही कर पाती
एक मर्यादा होती है
शायद इसलिए
अपना आशियाना
बदल देती है
धूप भी मजबूर होती है
दस्ताने पहनने को………
sundar rachna
baat to sahi hai lekin kisi ne kahaa hai ki
main uske angan me bikhar bikhar jaati
wo apne ghar ke dareeche agar khule rakhta
अब नहीं उतरती धूप
मेरे चौबारे पर
शायद कहीं और
आशियाँ बना लिया उसने
कौन उतरता है
सीले हुए मकान में
गहन भावों का समावेश इन पंक्तियों में ।
kaphi satark aur sateek baat kahi aapne. ek taraf andhere ki tarafdaari aur dusre taraf na pahunch pane ki majburi bhi hai......accha laga padhkar.
आह धुप भी निकली बेगानी...
बेहतरीन अभिव्यक्र्ती.
बहुत सुन्दर लिखा है आपने.
behtareen.
bahut hi badhiya..
बहुत गहन अभिव्यक्ति ...
वंदना जी,
सुभानाल्लाह......बहुत शानदार.....इस पोस्ट के लिए आपको सलाम......हर बात बहुत गहरी है .....प्रशंसनीय|
jaan daar ...bahut sundar...
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