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मंगलवार, 14 जुलाई 2009

नदिया की रवानी अभी देखी कहाँ है

तूने नदिया की रवानी
अभी देखी कहाँ है
बहते पानी की मदमस्त जवानी
अभी देखी कहाँ है
बलखाती ,मदमाती , अल्हड नदिया की
लहरों से छेड़खानी
अभी देखी कहाँ है
लहरों के गीतों पर
उछलती नदिया की
अंगडाइयां अभी देखी कहाँ हैं
तूफानों के साये में
पलने वाली नदिया की
तूफानों को बहा ले जाने की अदा
अभी देखी कहाँ है
तूने नदिया की रवानी
अभी देखी कहाँ है

34 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

वन्दना जी बहुत ही सुन्दर सकारात्मक भाव दर्शाती कवित के लिये बधाई

Razi Shahab ने कहा…

bahut achcha

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

behtreen.

ओम आर्य ने कहा…

WAAH .....WAAH......WAAH

रंजना ने कहा…

सुन्दर रचना.....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नदिया की मदमस्त रवानी,
देख-देख हैरानी है,
बलखाती अलमस्त जवानी,
दो दिन में पिट जानी है।
तूफानों के साये में,
इठलाना अच्छी बात नही-
सागर में मिल जाने पर,
मस्ती सारी मिट जानी है।।

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन!!

चन्दन कुमार ने कहा…

mere hisab se behtarin , jawab nahin

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह......... नादिया का बलखाता इठलाता पानी बहूत कुछ कहता है.......... सुंदर रचना लिखी है उसी पानी को बाँध कर

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

achchi kavita..
bahut badhiya...

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुन्दर लगी आपकी यह रचना

सुशील छौक्कर ने कहा…

एक बार खूब पानी बरस जाए बस। अच्छा लगा पढकर।

ktheLeo (कुश शर्मा) ने कहा…

वन्दना जी,
आप की भाव पूर्ण अभिव्यक्ति और विचार विन्यास अनुपम है. सुन्दर और भाव गर्भित रचना, बधाई.

दरिया की रवानी पर एक-दो प्रतिबिम्ब मेरे पास भी है,कभी "सच में"(www.sachmein.blogspot.com)पर आना हो तो नीचे दिये Link पर जाने का कष्ट करें.


http://sachmein.blogspot.com/2009/03/blog-post_24.html

http://sachmein.blogspot.com/2009/03/part-ii.html

हें प्रभु यह तेरापंथ ने कहा…

वन्दनाजी
'बलकाती,मदमाती अल्हड नदियॉ की
लहरो से छेडखानी
अभी देखी कहॉ।'

आप द्वारा रचित इस कविता मे रोचकता व एक नई उमग बरकरार रही। आपकी रचनाओ को अब मै रोज यहॉ आकर पढ लेता हू। अच्छा लगता है। आपकी इस नई सृजनता के लिए मै आपका अभिवादन करता हू एवम बधॉई देता हू।



आभार/मगलभावो के साथ
मुम्बई टाइगर
हे प्रभु तेरापन्थ खान

Prem Farukhabadi ने कहा…

तूफानों के साये में
पलने वाली नदिया की
तूफानों को बहा ले जाने की अदा
अभी देखी कहाँ है
तूने नदिया की रवानी
अभी देखी कहाँ है

yah na hui ki baat.kavita apne aap mein khil ke rah gayi hai. badhaai!!!!!!

Science Bloggers Association ने कहा…

बहुत सुंदर भाव हैं।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Prem Farukhabadi ने कहा…

तूफानों के साये में
पलने वाली नदिया की
तूफानों को बहा ले जाने की अदा
अभी देखी कहाँ है
तूने नदिया की रवानी
अभी देखी कहाँ है

bahut sundar!

समय चक्र ने कहा…

सुन्दर रचना

समय चक्र ने कहा…

सुंदर रचना...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

meethe paani ki tarah is racha swaad chakhaa kahan hai......

M VERMA ने कहा…

बेहतरीन रचना
खूबसूरत प्रस्तुति

Prem Farukhabadi ने कहा…

तूफानों के साये में,
इठलाना अच्छी बात नही-
सागर में मिल जाने पर,
मस्ती सारी मिट जानी है।।

bahut sundar!

जितेन्द़ भगत ने कहा…

काबि‍लेतारीफ ज़ज्‍बा।

विवेक सिंह ने कहा…

गज़ब कर दिया जी !

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

bahut sundar rachna...

लोकेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा…

वाकई में ये सच्चाई है.........
सुन्दर रचना.........

शोभना चौरे ने कहा…

नदी के तेवर को दर्शाती अच्छी कविता |abhar

Preeti tailor ने कहा…

नदी को फुर्सत नहीं कोई उसे देखे या नहीं बस उसे तो सागर मिलन की आस में दौड़ना ही है ..काश हम इंसान कुछ समज पाते इस प्रकृति ....

admin ने कहा…

Shaandar rachna hai. Badhaayi.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

anil ने कहा…

अच्छी बेहतरीन रचना !

BrijmohanShrivastava ने कहा…

एक अच्छी रचना पढने को मिली -आभार

गुंजन ने कहा…

वंदना जी,

एक नई साहित्यिक पहल के रूप में इन्दौर से प्रकाशित हो रही पत्रिका "गुंजन" के प्रवेशांक को ब्लॉग पर लाया जा रहा है। यह पत्रिका प्रिंट माध्यम में प्रकाशित हो अंतरजाल और प्रिंट माध्यम में सेतु का कार्य करेगी।

कृपया ब्लॉग "पत्रिकागुंजन" पर आयें और पहल को प्रोत्साहित करें। और अपनी रचनायें ब्लॉग पर प्रकाशन हेतु editor.gunjan@gmail.com पर प्रेषित करें। यह उल्लेखनीय है कि ब्लॉग पर प्रकाशित स्तरीय रचनाओं को प्रिंट माध्यम में प्रकाशित पत्रिका में स्थान दिया जा सकेगा।

आपकी प्रतीक्षा में,

विनम्र,

जीतेन्द्र चौहान(संपादक)
मुकेश कुमार तिवारी ( संपादन सहयोग_ई)

दिलीप कवठेकर ने कहा…

बहुत बढिया!!

Harshvardhan ने कहा…

bahut sundar rachna hai...