बिस्तर की सिलवटें तो मिट जाती हैं
कोई तो बताये
दिल पर पड़ी सिलवटों को
कोई कैसे मिटाए
उम्र बीत गई
रोज सिलवटें मिटाती हूँ
मगर हर रोज
फिर कोई न कोई
दर्द करवट लेता है
फिर कोई ज़ख्म
हरा हो जाता है
और फिर एक नई
सिलवट पड़ जाती है
हर सिलवट के साथ
यादें गहरा जाती हैं
और हर याद के साथ
एक सिलवट पड़ जाती है
फिर दिल पर पड़ी सिलवट
कोई कैसे मिटाए
14 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना और शब्दों पर बारीक पकड़
सुंदर भावपूर्ण रचना
बहुत भावपूर्ण रचना है।बहुत अच्छी लगी।बधाई।
sundar rachana,gehre bhav.
ye dard hi aisa hai ki mitaaye na mite
dard ye kaisa hai ke mittao to badhe.
sunder rachna,
kuchh silvaton ki tah mat kholo ,
kuchh khayaloko suljaane ki koshish mat karo,
kuchh jajbaaton ko mukt karne ki cheshta mat karo,
kuchh khwabonki tabir ki koshish mat karo,
ye silvaten hamari amanat hai ,duniya se chhupkar baithi khud se khud ki pahchan hai ..
बेहतरीन रचना!!
बहुत सुंदर रचना...सच्ची बात कही है आपने...इस प्रशन का जवाब कौन देगा?
नीरज
सच और गहरी बात कहती आपकी रचना।
really very true.
ek baar jo baat dil ko lag jaaye use mita paana bahut mushkil hota hai..
दिल को छू लेने वाली रचना..आभार प्रस्तुति का.
शुभकामनाएं........
bahut sunder shabdo ka prayog.. likhti rahiyee..
bahut hi touchy and classic composition
badhai ho
take care
regards
vijay
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